सुरत, आत्मा और जीवात्मा--

सुरत-- अर्थात शुभ में रत, और शुभ वही है जो पूर्ण शुघ्द है। न काल का प्रभाव न निर्मल माया की मिलवट , तो वह क्या है। वह आत्मा नहीं वह है चेत। चेत यानी प्रकाश , हां मात्र प्रकाश और गति जिसका गुण है।और यही प्रकाशीय गति शब्द का कारण है , जिसके होने मात्र से शब्द उत्पन्न होता है। इस प्रकार शब्द प्रकाश कुल का है।
गति के प्रभाव से शब्द की जो लहर या तरंग उठती है और हमें अपनी ओर आकर्षित करती है , तो यही वह खिंचाव शक्ति है जिसे हम आकर्षण के नाम से जानते है और जिसका प्रकट स्वरूप प्रेम है। तो आदि शब्द के इसी आकर्षण व प्रेम को पवित्र माना गया और इस तरह परमात्मा व प्रेम को एक रूप माना गया।
आत्मा-- का भी वही स्वरूप है, जो कि परम् आत्मा का है, क्योंकि हर आत्मा, परम् आत्मा का अंश रूप है, अंश कहने का अर्थ यह नही कि, आत्मा, परम् आत्मा से अलग हुआ कोई टुकङा है।पर यही कि एक आत्मा के भी वही प्रभाव व गुण है जो कि परम् आत्मा के है, जैसे सूर्य व उसकी किरण व धूप में जो ऊष्मा है ,वह सूर्य की ही है। धरती पर सूर्य की किरण , धूप व ऊष्मा तो होती है पर सूर्य नही।
तो आत्मा प्रेम स्वरूप है यानी शुध्द चेत जब जगत में , प्रेम स्वरूप में प्रकट होता है वही आत्मा का स्वरूप है । इस प्रकार शुध्द चेत अपनी गती के प्रभाव से शब्द स्वरूप को प्राप्त हुआ और शब्द से जो लहर उठी , इसे ही हम अंतर् में उठनें वाले भाव कहते हैं और प्रेम स्यंम में भाव मात्र ही है।
इस प्रकार चचेत से भाव तक का विकास क्रम ही एक आत्मा का वास्तविक स्वरूप होता है-- और भाव ,शब्द का विकास व शब्द चेत का स्वरूप है। और भाव ही जीव की कारण देह होता है।
आत्मा चूंकि तत्व रूप है ,जिसे हम परम् तत्व के रूप में जानते हैं ,अतः भाव ही आत्मा का स्थूल रूप है और शब्द सूक्ष्म रूप व चेत ही आत्मा का कारण है। तो चेत जो कि सब रचना व देहियों का आदि कारण व मूल है,फिर यही चेत जब अपने मूल धुन धार की दिशा में प्ररित व अग्रसर होता है तब इसे ही शुभ में रत या सुरत कहा गया है।
1 Comments:
Muje ye book chiye
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home