Sunday, 2 June 2013

सुरत-शब्द--2

                                  
      सतसंग,सुमिरन और भजन ,यही परमार्थ के तीन मुख्य अंग हैं।सतसंग परमार्थ का भौतिक स्वरूप है, सुमिरन मानसिक और भजन आत्मिक अंग है। इसमें भजन यानी अभ्यास मुख्य है, क्योंकि उद्धार आत्मा का होता है, तन तत्वों मे और मन चिदाकाश यानी ब्रहमाण्डीय मन में लीन हो जाता है।
     सतसंग से बुद्धी स्पषट होती है तो कर्म निश्काम हो जाते हैं।सुमिरन से मन निर्मल होता है तो विचार, विकार रहित हो जाते हैं और भजन से आत्मिक सामर्थ प्राप्त होती है तो एक जीवात्मा-सुरत बन जाती है। 
     यदि सत्संग में ध्यान न लगे तो बुद्धी विकारों से ग्रसित हो जाती है। सुमिरन में ध्यान न लगे तो नााम गुप्त हो जाता है और भजन में ध्यान न लगे तो शब्द नहीं खुलता। इस प्रकार हम पाते हैं कि , परमार्थ की राह में ध्यान ही मुख्य है। ध्यान साधन है और इसका उपयोग साधना।
        कुछ लोग कहते हैं कि ध्यान नहीं टिकता या मन में उठने वाले विचार नहीं रुकते या कि वर्षों हो गये पर शब्द नहीं खुलता। दरअसल ये वो लोग हैं जो सत्संग तो नियमित  रूप से सुनते है पर  सत्संग किया कभी नहीं। सुनने मात्र से कल्पनाओं का विकास होता है और सतत्संग करने से मार्ग पर बढने की तकनीक प्राप्त होती है। तो ऎसे लोग कल्पपनाओं में ही सारा मार्ग तै कर लेते हैं और सब कुछ रट कर वाचक ज्ञानी बन जाते हैं।
      तो सतसंग किया कैसे जाय. -- .....ध्यान दे कर। हम बच्चों से कहते हैं कि पढाई में ध्यान द वरना फेल हो जाओगे या तुम्हारा ध्यान किधर है......अर्थ यह है कि हमारा ध्यान जब हमारे पास होगा , तब ही तो हम उसका उपयोग कर पाएंगे, वह तो जगत् में विचारों के पीछे-पीछे न जानें कहां-कहां भटकता रहता है, फिर भला एक बिंदु पर  टिके कैसे....तो भजन की शुरूआत , शब्द के नहीं, पर ध्यान के अभ्यास से शुरू होती है। यही गलती, अक्सर जीव जल्दबाजी में कर बैठता है -- ध्यान साध नहीं पाता और शब्द को पकड़ने दौड़ पड़ता है और जब कुछ प्राप्त नहीं होता तब निराश हो कर बैठ जाता है। कहने का अर्थ यही है कि साधन के बिना साधना नहीं होती और साधना के बिना सिद्धी प्राप्त नहीं होती। तो अभ्यास की शुरूआत ध्यान को साधने से होती है और शब्द स्वतः खुलता है।
                                                                 राधास्वामी जी
                                                                 राधास्वामी हैरिटेज      
  (संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)  

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