Saturday, 15 June 2013

सुरत शब्द------5

शब्द का खुलना व शब्द अभ्यास एक आतमिक प्रक्रिया है। जो कि व्यवहारिक धरातल पर होती है , अतः इसे किसी आध्यात्मिक सिद्धान्त के रूप में नहीं समझना चाहिये।
संतत राधास्वामी में , आत्मा का ठहराव,देह में,दौनों भुकटियों के मध्य , कुछ भीतर की ओर बताया गया है। जाग्रत अवस्था में आत्मा की धार इसी स्थान से उतर कर आंखों में आती और फिर पूरी देह में व्याप्त हो जाती है। तो दौनों भुकटियों के मध्य जो बिन्दु है,वही शब्द धार का देह में ठहराव और आंखों में जो प्रकट होता है, वह भाव है। फिर देह की जो क्रियाशीलता है वह भावनाओं पर आधारित होती है और भावनाऎ सकारत्मक व नकारात्मक दौनो प्रकार की होती हैं , जो कि जीव के वर्ताव व व्यवहार में स्पष्ट होती रहती हैं। इस प्रकार हम पाते हैं कि देह व मन की क्रियाशीलता का कारण , शब्द धार की उपस्थिति ही है। इसी लिये संतमत में ध्यान को मध्य बिन्दु पर एकाग्र करने का विधान है।
मध्य बिन्दु या तिल , मस्तिष्क का एक भाग या अंग है और शरीर विज्ञान की भाषा में इसे ओलफैक्टरी बल्ब कहा जाता है , जैसा कि चित्र में स्पष्ट है। ------------ क्रमशः


 तिल के दूसरे छोर पर स्थित भाग को अमयगदाला Amygdala कहा कहा गया है । जो कि मनुष्य की सकारात्मक , नकारात्मक व भावनात्मक सोच का केन्द्र होता है। सामान्य अवस्था में Amygdala का स्तर सामान्य होता है और जीव का व्यवहार भी , पर उत्तेजना की स्थिति में अमयगदाला का स्तर भी बढने लगता है , और जैसे-जैसे यह स्तर बढता जाता है , उत्तेजना के साथ-साथ जीव के वर्ताव व व्यवहार में नकारत्मक्ता या विकार प्रकट होने लगते है। और अत्यधिक उत्तेजना की स्थिति में मनुष्य का चेतन मस्तिष्क कार्य करना बन्द कर देता है और अवचेतन मस्तिष्क में समाहित समस्त नकारात्मक्ता व विकार( काम , क्रोध , लोभ , मोह व अहंकार ) जीव के व्यवहार में प्रकट होने लगते हैं।
एक मनुष्य और अन्य सभी जीवधारियों में यही मूल भेद है। अन्य सभी जीवों में केवल अवचेतन मस्तिष्क ही होता है। इसीलिये वे मुख्यतः अपने अनुभवों के आधार पर मात्र प्रतिक्रया ही करते है और किसी भी विषय पर मनन् व चिंतन नहीं कर सकते। अतः उत्तेजना की उच्च स्थिति में मनष्य भी पशुवत व्यवहार करनें लगता है।
तो किस प्रकार मनुष्य उत्तेजना की स्थिति पर नियंत्रण कर सकता है
.......इसका भेद शब्द-अभ्यास की रीत में छिपा है । जिसे एक प्रेमी सतसंगी और अभ्यासी व्यक्ति ही जान सकता है।
सबको राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
( संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित )

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