Monday, 17 June 2013

सुरत-शब्द-------10.

प्रणव पद को पार कर के सुरत जब आगे बढती है और चिदकाश को भेद कर जिस पद पर पहुंचती है वह दसवां द्वार सुन्न का है। इस पद पर भारी अचम्भा है और समझ भी चौन्धिया जाती है , फिर भी कुछ कहता हूँ।
यहां का प्रकाश प्रणव पद से दस-पंद्रह गुना अधिक है और शब्द ररंकार है। कारण , सूक्षम और स्थूल दहों , तीनों गुण और पांचो तत्व और तन्मात्रा से मुक्त सुरत प्रेम की सामर्थ या ताकत से खिंची चली जाती है। यही पारब्रह्म है और पुरूष व प्रक्रति का इसी स्तर पर प्रकाट्य है। इसी पद को बैकुण्ठ भी कहा गया है , तो जो इस स्तर तक पहुंचा वही पूरा साध या साधक है।
इस पद पर बहुत सी सुरतों का वास है , इस पद पर अम्रत सरोवर से तमाम धाराएं बह रही हं और वासी सुरतें उसका आहार करती हैं। यहां के तेज चमकते प्रकाश में सुरतें चकती हुयी इधर सेउधर डोलती रहती हैं और तरह-तरह की खुशबुएं और रसीली धुनें यहां के वातावरण में फैली हुय़ी हैं। शीशे के समान पारदर्शी महलों में सतरंगी आभा से चमकती सुरतों का इनमें ठहराव या निवास है और यही सतरंगी आभा पूरे मण्डल में फैली हुयी प्रतीत होती है। इससे अधिक क्या कहूं, जो कहा अपनी समझ से बहुत कहा पर फिर भी कुछ न कह सका। इस स्तर को वही जान सकता है जो यहां पहुंचा।
सो.....सबको राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
( संतमत विशवविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित )

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