Sunday, 16 June 2013

सुरत-शब्द-----7

तो चैतन्य धार, सहस दल कँवल से जब ऊपर उठती है, तब आकाश मे सुई की नोंक के समान छिद्र या द्वार दिखाई पङता है। अभ्यासी को अवश्य है कि अपने चैतन्य द्वारा इस द्वार में प्रवेश करे
........क्रमशः


 सुरत-शब्द---7 का शेष.....

..........इस द्वार को योग शास्त्र में ब्रह्म रंध्र कहा गया है, (चित्र में सं. 4)। इसमें प्रवेश करने पर चैतन्य , पहले सीधा ऊपर की ओर चढता है फिर नीचे की ओर उतरता और फिर जब पलट कर ऊपर की दिशा में सीधा चढता है , तब इस बिन्दु को योग शास्त्र में अधिपति रंध्र के नाम से जाना गया है (चित्र में सं. 5 )। तो ब्रह्म व अधिपति दौनों ही रंध्र मस्तिष्क में ऊपर से नींचे की ओर , 3 - 4 से. मी. की लम्बाई में , बाल से भी महीन होती है।
आकाश द्वार से हो कर चैतन्य जब आगे बढता है, और फिर पलट कर नीचा उतरता और फिर सीधा ऊपर चढता है , तो इसी पूरे मार्ग को संतमत में बंक नाल के नाम से जाना गया है । यहां तक की रचना हमें स्थूल देह में स्पष्ट होती है और मनुष्य देह को ब्रह्माण्ड के छोटे स्तर पर एक नमूने या माँडल के रूप में सिद्ध करती है। जैसे किसी बहुत बङी सी तस्वीर की कोई छोटी सी कापी होती है, उसी प्रकार मनुष्य देह में सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की समस्त कुदरती ताकतें छोटे स्केल या पैमाने पर मौजूद होती हैं।
इससे आगे जब चैतन्य बढता है,तब दूसरे आकाश में पहुंचता है। जिसे कि सुरत का चढना कहा गया है और चैतन्य अब सुरत कहलाता ह
सबको राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटज
( संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित )

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home