सुरत-शब्द-------8
मनुष्य की समस्त दैहिक व मानसिक क्षमताओं का केन्द्र मस्तिष्क ही होता है।
शब्द-अभ्यास की प्रक्रिया भी आँखों के पीछे तिल के स्थान से शुरू हो कर व
पूरे मस्तषक से हो कर ही आगे बढती है। इस प्रकार सम्पूर्ण मस्तिष्क व उसका
हर एक महीन से महीन बिन्दु भी चैतनय के प्रभाव से जाग्रत हो उठता है। अर्थ
यह है कि, इस प्रक्रिया में मनुष्य की समस्त दैहिक व मानसिक क्षमताएँ
जाग्रत हो उठती हैं ।.......क्रमशः
निशचित है कि, मुक्ति आयु पूर्ण होने पर ही प्राप्त होगी , पर प्रश्न यह है कि एक अभ्यासी व्यक्ति में जो दैहिक व मानसिक क्षमताएँ जाग्रत हो उठती हैं, उनका अपने जीवन काल में वह अपने भौतिक जीवन में किस प्रकार उपयोग कर सकता है. और एक सहज व सुफल जीवन जी सकता है......
यही प्रश्न एक अभ्यासी व्यक्ति के आत्मिक जीवन को उसके भौतिक जीवन व जीवन की आवश्यक्ताओं से जोङता है। जिसे परमपुरूष पूरनधनी हुजूर स्वामी जी महाराज ने स्वार्थ के संग परमार्थ के रूप में व्यक्त किया है ( वचन 18. जो कि परमपुरूष ने अन्तर्द्धान होने से पहले राधा जी से फरमाया )
तो संतमत की शिक्षाओं का व्यवहारिक उपयोग , आज के समय में दुखः, क्लेशों व काल के प्रभाव से ग्रसित हर मनुष्य की आवशयक्ता व समाधान है। जो कि संतमत को एक व्यवहारिक विषय के रूप में जानने व समझने के लिये प्रेरित करती है , और यही संतमत विशवविधालय की स्थापना का उद्धेशय भी है।
सबको राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरटेज
( संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित )
निशचित है कि, मुक्ति आयु पूर्ण होने पर ही प्राप्त होगी , पर प्रश्न यह है कि एक अभ्यासी व्यक्ति में जो दैहिक व मानसिक क्षमताएँ जाग्रत हो उठती हैं, उनका अपने जीवन काल में वह अपने भौतिक जीवन में किस प्रकार उपयोग कर सकता है. और एक सहज व सुफल जीवन जी सकता है......
यही प्रश्न एक अभ्यासी व्यक्ति के आत्मिक जीवन को उसके भौतिक जीवन व जीवन की आवश्यक्ताओं से जोङता है। जिसे परमपुरूष पूरनधनी हुजूर स्वामी जी महाराज ने स्वार्थ के संग परमार्थ के रूप में व्यक्त किया है ( वचन 18. जो कि परमपुरूष ने अन्तर्द्धान होने से पहले राधा जी से फरमाया )
तो संतमत की शिक्षाओं का व्यवहारिक उपयोग , आज के समय में दुखः, क्लेशों व काल के प्रभाव से ग्रसित हर मनुष्य की आवशयक्ता व समाधान है। जो कि संतमत को एक व्यवहारिक विषय के रूप में जानने व समझने के लिये प्रेरित करती है , और यही संतमत विशवविधालय की स्थापना का उद्धेशय भी है।
सबको राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरटेज
( संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित )
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