जिज्ञासा ..... 8
बंधन व मुक्ति किसे कहते हैं .....
सुरत अपने मूल पद से उतर कर तीन गुण - सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण फिर पांच तत्व - प्रथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश फिर चार अंतःकरण - मन, बुद्धि, चित व अहंकार फिर पांच ज्ञानेन्द्रियों - आंख, नाक, कान, जिव्हा व त्वचा फिर पांच कर्मेंन्द्रियों - हाथ, पैर, मुंह, लिंग व गुदा और इन सभी के माध्यम से जगत में फंस गई है। इस तरह सुरत का देह व देह से सम्बंधित पदार्थों के साथ मोह का ऐसा बंधन पड़ गया है कि सुरत भूले बैठी है - अपना कुल, मूल और घर का पता। बंधन दो प्रकार के होते हैं, बाहरी और अंतरी। बाहरी बंधन पारिवारिक व सामाजिक सम्बंधों, धन-सम्पदा, रीत-रिवाज आदि के और अंतरी बंधन देह, इन्द्री, मन, तत्व, गुण और अंतःकरण के होते हैं। इन सभी बंधनों से छूटना ही सच्ची मुक्ति है।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
बंधन व मुक्ति किसे कहते हैं .....
सुरत अपने मूल पद से उतर कर तीन गुण - सतोगुण, रजोगुण और तमोगुण फिर पांच तत्व - प्रथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश फिर चार अंतःकरण - मन, बुद्धि, चित व अहंकार फिर पांच ज्ञानेन्द्रियों - आंख, नाक, कान, जिव्हा व त्वचा फिर पांच कर्मेंन्द्रियों - हाथ, पैर, मुंह, लिंग व गुदा और इन सभी के माध्यम से जगत में फंस गई है। इस तरह सुरत का देह व देह से सम्बंधित पदार्थों के साथ मोह का ऐसा बंधन पड़ गया है कि सुरत भूले बैठी है - अपना कुल, मूल और घर का पता। बंधन दो प्रकार के होते हैं, बाहरी और अंतरी। बाहरी बंधन पारिवारिक व सामाजिक सम्बंधों, धन-सम्पदा, रीत-रिवाज आदि के और अंतरी बंधन देह, इन्द्री, मन, तत्व, गुण और अंतःकरण के होते हैं। इन सभी बंधनों से छूटना ही सच्ची मुक्ति है।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
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