Sunday, 29 June 2014

जिज्ञासा ..... 4

आदि नाद या शब्द क्या है .....

इस विषय पर मै - दस नाद और मंजिल अट्ठारह ..... लेख में विस्तार से लिख चुका हूँ।
शब्द जो कि प्रकाश कुल का है, अनंत का स्वरूप, इसकी महिमा अपार है।
आदि शब्द सब का करता और मालिक है। इसी को आदि नाद व आवाज़े-गैब कहते हैं। प्रणव पद यानि वेद के प्रगट होने के स्थान से जो शब्द प्रगट है उसे अनहद नाद या शब्द ब्रह्म कहा गया है। फारसी में इसे ही कुदरत-कुल कहा है और बाइबिल कहती है कि - आदि में शब्द था , शब्द मालिक के साथ था और शब्द ही मालिक था (है)।
शब्द की महिमा तो सभी मतों में की गई है पर शब्द का भेद किसी मत में नहीं मिलता। सिर्फ संतों ने शब्द का भेद कहीं इशारों में तो कहीं गुप्त रूप से अपनी-अपनी बानी में प्रगट किया है। फिर जब परम् पुरूष ने जीवों पर अति भारी दया करी और नर रूप धारण कर गुरू रूप में जगत में आए और शब्द के भेद को विस्तार से खुल कर समझाया - जगत ने उन्हें परमपुरूष पूरनधनी हुजूर स्वामी जी महाराज के रूप में जाना और राधास्वामी महाराज के नाम से पुकारा, माता-पिता द्वारा आपका सांसारिक नाम शिव दयाल सिंह सेठ रक्खा गया। हुजूर कुल मालिक दयाल की बानी व उपदेश को ही सारा जगत संतमत राधास्वामी के नाम से जानता है।
राधास्वामी सदा सहाय .....
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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