Monday, 17 June 2013

सुरत-शब्द-------11.

सुन्न पद पर पहुंच कर भी अभ्याय में कुछ समय के लिये एक ठहराव आता है और बहुत से कच्चे तैराक इस पद के अचरज में फंस कर अटक जाते हैं। पर सुरत सतगुरू की दया और मेहर पा कर आगे बढती है और सुन्न के स्तर को पार कर के सुरत जिस पद पर पहुंचती है वह महा सुन्न मैदान है।
अंधेरे के सिवा इस पद पर कुछ नहीं सूझता। सुरत अनन्त गहराइयों में उतरती चली जाती है पर कोई ठौर नहीं मिलता , तब फिर पलट कर ऊपर को चढती है और मार्ग की वह समझ जो सतगुरू ने दी थी उसी के सहारे आगे बढती है। इस पद पर तमाम सुरते जिनका सत्यलोक में प्रवेश वर्जित है , अपने-अपने स्तरों के अनुसार चार भागों या अपनी सीमांओ की हद में निवास करतीं हैं और अपने ही आत्मिक प्रकाश में व्यवस्थित रहतीं हैं। इन सुरतों को सतपुरूष के दर्शनों की आज्ञा नहीं होती। दरअसल ये वे सुरतें है जो कि सतपुरूष की आज्ञा से सतलोक से निकली गयी होती हैं । बहुत सी जटिल प्रकियाएँ व कार्यवाहियां इस स्तर पर हो रही हैं, जिसका जीव के मानसिक हित में गुप्त रहना ही निशचित है, तो जब एक सुरत दयाल की दया और सतगुरू की मेहर पा कर आगे बढती है तब स्यंम ही उस पद के कुल हालात से परिचित हो जाती है ।
पर जब संत या संतो की दया पा कर कोई सुरत उस मार्ग से गुजरती है तब जो निवासी सुरतें उनसे विनती करती हैं और सतपुरूष की उन पर दया हो जाए तब संतो का मान रखते हुए यदि सतपुरूष की इच्छा हो तो इन निकाली हुयी सुरतों को वापसी का मार्ग मिल जाता है।
इस से अधिक , इस स्तर का भेद प्रकट करने की आज्ञा संतो को भी नहीं । तो इस मार्ग से सुरत जब आगे बढती है तब पद भंवर गुफा का है।
सबको राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
( संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रि सर्पित )

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