जिज्ञासा ..... 11
कँवल के दल का क्या अर्थ है .....
वृत्तियों और धारों को ही कँवल के दल कहा गया है। पिण्ड देश (देह) में स्थित कँवलों के दलों को वृत्तियां कहा जाता है और ब्रह्माण्डीय कँवलों के दलों को धारें कहा गया है।
जिज्ञासा ..... 12
जैसा कि ये सभी कँवल अंतर में स्थित हैं यानी स्थूल अंग नहीं हैं , तब भी इनका सम्बंध स्थूल देह व अंगों से कैसे कायम हो पाता है .....
शरीर यानी देह तीन प्रकार की होती है - स्थूल, सूक्ष्म व कारण।
स्थूल देह जो कि दिखाई पड़ती है इसे आत्मा का एक खोल, कवच या यंत्र मात्र ही समझना चाहिये। इसका सम्बंध सिर्फ जाग्रत अवस्था में ही कायम हो पाता है। इसीलिये स्थूल देह से सम्बंधित सभी सुखः व दुखः आदि सिर्फ जाग्रत अवस्था में ही महसूस व मालूम पड़ते हैं।
सूक्ष्म देह का सम्बंध सिर्फ स्वप्न यानी निद्रावस्था से और कारण देह का सम्बंध सुषोपति या ध्यानावस्था से है। इस तरह यह तीन आवरण , एक के ऊपर एक सुरत पर चढे हुए हैं।
इसे इस तरह समझना चाहिए कि सुरत एक चैतन्य शक्ति असंख्य धारों वाली है। यह चैतन्य धारें पहले निर्मल आभा व प्रकाश यानी नूर थी, फिर हर स्तर पर - स्तर दर स्तर माया आदि की मिलावट होती चसी गई। तो जैसे-जैसे मिलावट होती गई वैसे-वैसे आकार बनना शुरू हुआ और सुरत की यह निर्मल धारें स्तर दर स्तर स्थूल होती चली गईं।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
कँवल के दल का क्या अर्थ है .....
वृत्तियों और धारों को ही कँवल के दल कहा गया है। पिण्ड देश (देह) में स्थित कँवलों के दलों को वृत्तियां कहा जाता है और ब्रह्माण्डीय कँवलों के दलों को धारें कहा गया है।
जिज्ञासा ..... 12
जैसा कि ये सभी कँवल अंतर में स्थित हैं यानी स्थूल अंग नहीं हैं , तब भी इनका सम्बंध स्थूल देह व अंगों से कैसे कायम हो पाता है .....
शरीर यानी देह तीन प्रकार की होती है - स्थूल, सूक्ष्म व कारण।
स्थूल देह जो कि दिखाई पड़ती है इसे आत्मा का एक खोल, कवच या यंत्र मात्र ही समझना चाहिये। इसका सम्बंध सिर्फ जाग्रत अवस्था में ही कायम हो पाता है। इसीलिये स्थूल देह से सम्बंधित सभी सुखः व दुखः आदि सिर्फ जाग्रत अवस्था में ही महसूस व मालूम पड़ते हैं।
सूक्ष्म देह का सम्बंध सिर्फ स्वप्न यानी निद्रावस्था से और कारण देह का सम्बंध सुषोपति या ध्यानावस्था से है। इस तरह यह तीन आवरण , एक के ऊपर एक सुरत पर चढे हुए हैं।
इसे इस तरह समझना चाहिए कि सुरत एक चैतन्य शक्ति असंख्य धारों वाली है। यह चैतन्य धारें पहले निर्मल आभा व प्रकाश यानी नूर थी, फिर हर स्तर पर - स्तर दर स्तर माया आदि की मिलावट होती चसी गई। तो जैसे-जैसे मिलावट होती गई वैसे-वैसे आकार बनना शुरू हुआ और सुरत की यह निर्मल धारें स्तर दर स्तर स्थूल होती चली गईं।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
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