जिज्ञासा ..... 13
जड़ व चेतन की गांठ का क्या अर्थ है .....
मन, इन्द्रियां, देह व समस्त भौतिक पदार्थ व भोग आदि जड़ हैं। मात्र सुरत ही चैतन्य है। त्रिकुटी के स्थान से मन व माया का प्रभाव शुरू होता व नीचे की ओर बढता जाता है। इस तरह त्रिकुटी के पद पर ही मिलौनी की शुरूआत होती है , इसी मिलौनी को जड़ व चेतन की गांठ कहा गया है, जो कि शुरूआत में बंधी।
सुरत को, जन स्तरों से हो कर वह नीचे की ओर व पिण्ड देश में उतरी है, उन्हीं स्तरों पर स्तर दर स्तर, अभ्यास की मदद से, ऊपर की ओर ले जाने से त्रिकुटी के स्तर पर जड़-चेतन की गांठ खुल जाती है। यानी माया का प्रभाव - निचले स्तरों के अनुसार व त्रिकुट के स्तर पर पूरी तरह नीचे ही छूट जाता है। इससे आगे माया का हुजूर नहीं है।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
जड़ व चेतन की गांठ का क्या अर्थ है .....
मन, इन्द्रियां, देह व समस्त भौतिक पदार्थ व भोग आदि जड़ हैं। मात्र सुरत ही चैतन्य है। त्रिकुटी के स्थान से मन व माया का प्रभाव शुरू होता व नीचे की ओर बढता जाता है। इस तरह त्रिकुटी के पद पर ही मिलौनी की शुरूआत होती है , इसी मिलौनी को जड़ व चेतन की गांठ कहा गया है, जो कि शुरूआत में बंधी।
सुरत को, जन स्तरों से हो कर वह नीचे की ओर व पिण्ड देश में उतरी है, उन्हीं स्तरों पर स्तर दर स्तर, अभ्यास की मदद से, ऊपर की ओर ले जाने से त्रिकुटी के स्तर पर जड़-चेतन की गांठ खुल जाती है। यानी माया का प्रभाव - निचले स्तरों के अनुसार व त्रिकुट के स्तर पर पूरी तरह नीचे ही छूट जाता है। इससे आगे माया का हुजूर नहीं है।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
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