Monday, 30 June 2014

जिज्ञासा ...... 39

क्या कारण है कि बहुतेरे अभ्यासियों को वर्षों अभ्यास कर के भी कुुुछ लाभ नहींं होता .......

वे विधि अनुसार व पूरेे परहेज के साथ अभ्यास नहीं करतेे हैंं। दरअसल ऐसे लोगों को  अभ्यासी भी नहींं कहना चाहिये, ये पूरी तरह सेे बाहरमुखी  और  दिखावटी लोग होतेेेे हैंं। अभ्यास जो पूरा सच्चा हो तो निश्चित रूप से फौरन ही अपना असर दिखलाता हैैैै।
अभ्यासी यानी सतसंगी चार प्रकार के होते हैं .....
पहले वे जो सभी बातें व सिद्धांत पोथी आदि में पढ कर या सुुन कर कण्ठस्त(याद) कर लेते हैं। जैसेे कोई बमार दवाओं के नाम  और  नुस्खे
रट लेे।  दूसरे वे जो दिखावे के लियेे दो--चार मिनट या अधिक आँखे बंंद कर के बैठ जाते हैं जैसे कोई बीमार दवा तो मुुंह में डाले पर कुल्ली कर दे।
तीसरे वे हैं जो मेंहनत से अभ्यास में तो बैठते हैं पर साथ ही विषय-भोगों में भी आसक्त रहते है, जैसे कोई रोगी दवा तो पी ले पर परहेज न करे। इन लोगों में लगन की कमी होती है।  और चौथे वे होतेे हैं जो पूरे शौक और सच्चे प्रेम व पूरी लगन से अभ्यास करते हैं औौर सांंसारिक विषय-भोगों व वासनाओं में गिरने सेंं हमेंशा बचते रहते हैं , जैसेेे कोई दवा भी पियेे और पूरा परहेज भी करेे। इसलिये चौथे किस्म के अभ्यासी ही पूरा लाभ प्राप्त कर सकते हैैंं।

राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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