Sunday, 29 June 2014

जिज्ञासा ..... 33

स्त्री और पुरूष सतसंगी की आत्मिक बढत में क्या कोई फर्क होता है.....

अपने जीव के कल्याण और उद्धार की जैसी जरूरत पुरूष को है वैसी ही स्त्री की है, क्योकि दौनो ही समान रूप से  मनुष्य चोले में है। और जैसी समझ पुरूष को प्राप्त है,  कुछ कम या अधिक वैसी ही स्त्री  को भी प्राप्त है।फिर भी देखा है कि , संतमत जो कि विशुद्ध प्रेम और भक्ति का मार्ग है, इसमें अक्सर स्त्रियां जल्दी फायदा उठाने लगती हैं,क्योकि उनमें स्वभाविक रूप से प्रेम व भाव का अंग प्रधान होता है।

तो जैसे कि ग्रहस्थी का हर काम  स्त्री और पुरूष मिल कर करते हैं और धर्म-शास्त्रों में भी स्त्री को अर्धांगनी कहा गया है , इसी तरह संत मत में भी स्त्री और पुरूष का समान अधिकार है।

राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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