Monday, 30 June 2014

जिज्ञासा ....... 37

भजन, ध्यान व सुमिरन का क्या अर्थ है ........

भजन - यानी अंतर में शब्द का सुनना व उसमें रस का प्राप्त होना और शब्द के आसरे सुरत का ऊपरी व रूहानी मण्डलों में चढना, इसी को  भजन करना कहते हैं।.
ध्यान  - यानी अंतर में स्वरूप पर मन, अंतर-द्रष्टि व सुरत का स्थिर होना।
सिमरन  - यानी जबान ए  दिल से नाम को याद करना य़ही सिमरन है।
ये तीनों ही अभ्यास के  अंग हैं।
जो पूरा अधिकारी है यानी जिसे सुन्न पद या  कि  दसवें द्वार पर उपदेश
 मिल चुका है, उसके लिये  भजन मुख्य व ध्यान-सुमिरन गौण हैं।  और इससे कमतर  के वास्ते ध्यान-सुमिरन मुख्य  व  भजन गौण समझना चाहिये।.
तो  हर अभ्यासी को उचित है कि जब  भी समय मिले संंतों की बानी  का  पाठ उनके अर्थों को खूब अच्छी तरह से समझ-समझ कर करे और जितना बन सके उन वचनों को अपने व्यवहार मे अपनाने का प्रयत्न करे।
भजन के वक्त पहले कुछ वक्त सुमिरन-ध्यान करें और फिर भजन मेंं लगें।  बाकी सतगुरू दयाल  पारखी हैं , हर भक्त और अभ्यासी के स्तर और हाल से  आप वाकिफ हैं  और जैसी जिस जीव को सम्भाल की जरूरत होती है वे आप ही सम्भाल लेते है..... सतगुरू स्वामी सदा सहाय .

राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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