Monday, 30 June 2014

जिज्ञासा ...... 34

सुरत-शब्द योग का अभ्यास कैसे किया जाता है .......

जो शब्द ऊँचे देश (रूहानी  मण्डल)  से नीचे के पिण्डड देश में, घट तक आ रहा है और जिसकी धुनकार हर एक मनुष्य के अंतर  मे हर वक्त धडक  रही है, उसमें रूह यानी सुरत को - ध्ययान के साथ जोड़ कर , ऊपरी मण्डलों में बढाते हुए, पिण्ड और ब्रह्माण्ड की हदों को पार कर, दयाल देश में  पहुंचना  ही सुरत-शब्द योग का  अ्भ्यास कहलाता है।

राधास्वामी जी


जिज्ञासा ...... 35

शब्द की धार जो कि  नीचे की ओर आ रही है, तब सुरत की धार  उसके सहारे ऊपर की ओर कैसे बढ सकती है .......

जैसे मछली जल में रह कर धारा के विपरीत तैरती है और  ऊपर से गिरती जल धारा के सहारे ऊपर के स्थनों में चढ जाती है। गहराई से इस आत्मिक तकनीक का भेद सतगुरू वक्त या उनकी आज्ञा से किसी सच्चे अभ्यासी (साध गुरू) से ही मालूम हो सकता है।

राधास्वामी जी
राधास्वामी  हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित

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