Sunday, 29 June 2014


जिज्ञासा ............. 30

सतसंग किसे कहते हैं .....

सत संग दो तरह से होता है, अंतरमुखी और बाहरमुखी।
मालिक से मिलना यानी भजन में बैठ कर अंतर में शब्द-गुरू का संग-साथ और उसमें रस का मिलना, यही अंतरी सत संग सच्चा है।
और सतगुरू वक्त के दर्शन करना , उनके वचनों को पूरे  ध्यान से सुनना और उन्हें व्यवहारिक्ता में अपनाना और सतगुरू की आज्ञा से जहां संतों की बानी का पाठ , अर्थ या परमार्थी चर्चा होती हो वहां जाना - ये बाहरमुखी सत संग है।
साथ ही यह जानना जरूरी है  कि संतों की बानी व वचन में सच्चे कुल मालिक राधास्वामी दयाल की महिमा और सुरत-शब्द मार्ग के अभ्यास की चर्चा व अभ्यासी के उन हालात का वर्णन, जो कि अभ्यास की द्रढता व बढत के साथ-साथ दिन प्रति दिन बदलते जाते हैं। और सतगुरू दयाल के चरणों में प्रेम व प्रीत का बढना और हाल  मन व इन्द्रियों के विकारों और उन्हे दूर करने के जतन का वर्णन किया जाता है।

राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्ववविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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