Sunday, 29 June 2014

जिज्ञासा  ............   28

संतमत  और  अन्य संसारी मतों में क्या  फर्क है........

संसार के अन्य सभी मतो में अ्धिकतर प्रवृति यानी  दुनियादारी  और  कुछ-कुछ निवृति यानी परमार्थ का जिक्र है, और संतमत में केवल  निवृति का ही जिक्र होता है।  यानी सच्चे मालिक का भेद और मालिक  के चरणों में सुरत-शब्द योग की कमाई कर के पहुंचने की जुगत का वर्णन किया जाता है।.
और......
जिन बातों या ऊपरी रचना  व रूहानी मण्डलों का वेद , उपनिषद व अन्य मतों  की किताबों में गुप्त रूप से, इशारों में या अति संक्षेप में  जिक्र किया गया है, संतों ने  अ्पनी जानिब से उन सभी बातों व स्थानों और स्तरों पर पहुँच कर ,  विस्तार से जिक्र किया है। इस लिहाज से  संतों का मत व सिद्धांत, संसार के अन्य सभी मतों के सिद्धांत पदों से ऊँचा है।
 
संतमत में सिर्फ अंतरी अभ्यास का मन व सुरत के साथ भेद कहा गया है,   और किसी भी तरह की बाहरी पूजा या रीत का कोई  बन्धन नहीं है।.इसी वजह से हर मजहब, मुल्क और  बिरादरी के लोग - बिना अपने मुल्क, बिरादरी और मजहब  व उसकी रीतों को छेड़े और छोड़े , संतमत को अपने जीवन में अपना कर सच्ची मुक्ति के मार्ग पर बढ सकते हैं।क्योंकि यह  मत रूहानी है यानी रूह के उद्धार के विषय में बताता है और रूह हर मनुष्य में एक सी ही है और उसके उद्धार की जरूरत भी हर मनुष्य् की एक जैसी ही है।

यही संतमत और अन्य संसारी मतों का फर्क है...........

राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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