Sunday, 29 June 2014


जिज्ञासा  ..... 25

ज्ञान का क्या अर्थ है.....

सत्य , अलख और अगम लोक के परे , कुल मालिक राधास्वामी दयाल के दर्शनों के अति भारी महा आनंद को प्राप्त कर शुद्ध प्रेम व शब्द स्वरूप हो जाना ही सच्चा व  पूर्ण ज्ञान है।.
इस पद पर पहुँच कर अभ्यासी - कुल माया व कुदरत की हर सीमा से पार हो जाता है। इसी अभेद भक्ति का परिणाम सच्ची मुक्ति है।
संतमत मे सच्चे व पुर्ण ज्ञान का अर्थ - पिछले युगों के कर्म , देवताओं व उनकी मूरतों की भक्ति , पूजा - उपासना या कोरा विधा ज्ञान नहीं माना गया है।  क्योंकि इनसे कुछ भी हासिल न होगा , ये सभी वयर्थ में समय और तन, मन, धन की बरबादी के कर्म-काण्ड और मन के बहलावे (छलावे)
ही हैं। फिर अब कलयुग मे किसी मनुष्य में इतनी सामर्थ भी नहीं कि सतयुग के कर्म व उपासना की रीत को नियमानुसार व शुद्ध रूप में पूर्णतयः निभा सके,  पर उलटा-सीधा जैसा मन चाहा कर-करा के अहंकार सब पाल लेते हैं।
इस कलयुग में जीव की हालत और समय के हालात कमजोर देख कर दयाल स्वंम संत सतगुरू रूप धर कर  आए  और जीव के हित  में संतमार्ग व अभ्यास की जुगत का उपदेश किया।.तो जो उपदेश  व जुगत सतगुरू
वक्त बताएं उसे चित लगा  कर करना और अंतर  में सुरत को जोड़ कर शब्द का सुनना और जब यह दौनों बातें ठीक-ठीक बन जाएं तब कुल मालिक राधास्वामी दयाल का अंतर में  प्रकाश दिखलाई पड़ना,   इस  तरह निरंतर अभ्यास से धीरे-धीरे अभ्यासी खुद एक दिन प्रकाशमय - शब्द  स्वरूप  हो जाएगा - इसी को सच्चा व पूर्ण ज्ञान कहते हैं।

राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के  प्रति समर्पित)

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