जिज्ञासा ..... 15
मालिक को सर्व व्यापक कहा जाता है, फिर उसके होने का कोई खास स्थान जैसे सत्त लोक या दयाल देश कैसे हो सकता है ......
मालिक सर्व व्यापक भी है और अपने निज पद पर भी है। यही उसके विशेष व सामान्य रूप का भेद भी है, जैसे सूरज एक देशीय भी है और अपने मण्डल (सौर्य मणडल) में सर्व देशीय भी है। सूरज धरती पर उतर कर नहीं आता पर फिर भी उसके होने के प्रभाव से ही धरती पर जीवन उपजता है। तो मालिक एक देशीय भी है और सर्व देशीय भी , जिसके होने मात्र से ही जो है वह सब है और सुरत उसी मालिक की एक किरण है। तो मालिक सर्व व्यापक नहीं पर सर्व व्यपी है। वयापक नही व्याप्त है वह।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
मालिक को सर्व व्यापक कहा जाता है, फिर उसके होने का कोई खास स्थान जैसे सत्त लोक या दयाल देश कैसे हो सकता है ......
मालिक सर्व व्यापक भी है और अपने निज पद पर भी है। यही उसके विशेष व सामान्य रूप का भेद भी है, जैसे सूरज एक देशीय भी है और अपने मण्डल (सौर्य मणडल) में सर्व देशीय भी है। सूरज धरती पर उतर कर नहीं आता पर फिर भी उसके होने के प्रभाव से ही धरती पर जीवन उपजता है। तो मालिक एक देशीय भी है और सर्व देशीय भी , जिसके होने मात्र से ही जो है वह सब है और सुरत उसी मालिक की एक किरण है। तो मालिक सर्व व्यापक नहीं पर सर्व व्यपी है। वयापक नही व्याप्त है वह।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
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