जिज्ञासा ..... 14
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का मनुष्य देह से सम्बंध व देह में उपस्थित होना किस प्रकार सम्भव है .....
ब्रह्माण्डीय पद व स्तर मनुष्य देह की तुलना में बहुत ही अधिक विशाल और अत्यधिक दूरी पर हैं। फिर भी उनकी चैतन्य डोर हमारे अंतर से जुड़ी है, जैसे टांसफारमर से घर के बल्फ की डोर जुड़ी है। जब सुरत शब्द- योग के अभ्यास से , सारी देह से सिमट कर ऊपरी मण्डलों में पहुँचती है तो जैसा और जितनी देर चाहती है उन मण्डलों के आनंद का रस पाती है, कयोंकि हमारे अंतर के जो पद या स्तर हैं उनकी डोर पिण्ड यानी देह व इन्द्रियों से जुड़ी है। इस तरह जो धारें आती-जाती है , उन्हे दूरबीन की तरह समझना चाहिये जिसके माध्यम से हम बहुत दूर के स्थानों के भी बिलकुल नजदीक पहुँच जाते हैं।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
( संतमत विश्वविधालय की सथापना के प्रति समर्पित)
सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का मनुष्य देह से सम्बंध व देह में उपस्थित होना किस प्रकार सम्भव है .....
ब्रह्माण्डीय पद व स्तर मनुष्य देह की तुलना में बहुत ही अधिक विशाल और अत्यधिक दूरी पर हैं। फिर भी उनकी चैतन्य डोर हमारे अंतर से जुड़ी है, जैसे टांसफारमर से घर के बल्फ की डोर जुड़ी है। जब सुरत शब्द- योग के अभ्यास से , सारी देह से सिमट कर ऊपरी मण्डलों में पहुँचती है तो जैसा और जितनी देर चाहती है उन मण्डलों के आनंद का रस पाती है, कयोंकि हमारे अंतर के जो पद या स्तर हैं उनकी डोर पिण्ड यानी देह व इन्द्रियों से जुड़ी है। इस तरह जो धारें आती-जाती है , उन्हे दूरबीन की तरह समझना चाहिये जिसके माध्यम से हम बहुत दूर के स्थानों के भी बिलकुल नजदीक पहुँच जाते हैं।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
( संतमत विश्वविधालय की सथापना के प्रति समर्पित)
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