Tuesday, 1 July 2014


जिज्ञासा ..... 40

कुछ समय तक अभ्यास कर के छोड़ देने या पूरा परहेज न करने से क्या कोई नुकसान है .....

सच्चा अभ्यास जैसा कि अभ्यासी की चौथी किस्म (जिज्ञासा ...39)  में बताया गया है, एक बार भी जीव को यदि उसका रस मिल जाए, तो फिर कभी भी छूट नहीं सकता। पर जिन मे सच्चा प्रेम व लगन नहीं है और जल्द ही कुछ पाने की लालसा प्रधान है, ऐसे मे जब कुछ ही दिनों में वे अभ्यास करना छोड़ देते हैं तो उनकी रूहानी तरक्की भी रूक जाती है और रस व आनंद का मिलना भी बंद हो जाता है।
पर .... जितना अभ्यास कर चुके हैं उसका फल अवश्य ही मिलेगा और जितना परहेज तोड़ते जाएंगे उसी के अनुसार रस व आनंद का मिलना भी कम से कमतर होता जाएगा।

इसी के साथ जिज्ञासा क्रम माला को यहीं रोकता हूँ। फिर भी यदि किसी भी मित्र  के मन में, संतमत व उसके सिद्धांतों से सम्बंधित कोई भी जिज्ञासा, प्रश्न या संशय शेष हो तो , वे अवश्य ही मैसेज कर सकते हैं।

अंत में यही कहना चाहूँगा कि , जिन्हों ने सतगुरू की टेक बांधी वे सब यहीं बंध गये , पर जिन्हों ने सतगुरू की  ओट  सम्भाली, वे सभी तर गये ।

सतगुरू स्वामी सदा सहाय .....
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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