Saturday, 30 May 2015

अंतर्यात्रा ..... ४
संतमत में सुरत-शब्द अभ्यास की ही महिमा बताई गयी है, अन्य किसी भी अभ्यास से तन व मन स्थिर नहि हो सकते. तो जब तक तन और मन स्थिर न होंगे, जीव में दीनता नही आ सकती, दीनता ही प्रेम और लगन है.
अंतर में भारी ताकत जारी है, इसी ताकत से तन और मन काम करते है. जवानी में भारी जोश होता है, लगता है की ताकत का अथाह भंडार है. इसमें तो कोई शक नही कि सुरत की जिस ताकत से तन और मन ताकत पाते है वो तो अथाह ही है. पर सामान्य रूप से तन और मन में सुरत की सामर्थ एक अनुपात के अनुसार ही आती है. और इससे अधिक, जिससे की तन, मन और इंद्री के घाटों पर, जिससे की तन-मन भोगों का रस लेते है, नहीं आती है. यदि इस अनुपात से अधिक आ जय तो अन्तःकरण   
के स्तर पर भरी तोड़-फोड़ हो जाय. यह ताकत समय और अवस्था के अनुसार और जीव जो देह धारण करता है या की जिस योनी में जनम लेता है, उसी के अनुसार जारी होती है. बाल अवस्था में यह अनुपात कुछ होता है, जवानी में वेग
 कुछ होता है, और बूढ़ा होने पर दूसरो का मोहताज हो जाता है, तो इस तरह की उदासीनता का कोई अर्थ नहीं, यह दैहिक थकावट ही है और कुदरत की व्यवस्था के अनुसार होता रहता है, अक्सर देखा जाता है की घर, कुटुंब के तनावों या गर घर वाली से न बनी या परिवार की जिम्मेदारी न उठा पाय या किसी अपराध की सजा से बचने के लिए कपड़े रंग लिए, कंठी-माला पहन ली और हर कर्त्तव्य और दायित्व से विमुख हो कर खुद को साधू बता दिया, जब की भीतर लालसाओं और कामनाओं का जोर न छूटा, ये तो मात्र उदासीनता का दिखावा ही है, समाज ऐसे रंगे सियारों से भरा है, तभी तो खुद को  साधू कहलवाने वाले चुनाव के सीजन में लोक सभा और विधान सभा में पहुँच जाते है. क्या वहां सत्संग या प्रवचन करते है ?    इसका आत्मिक उद्धार से कोई लेना-देना नहीं .  
सुरत-शब्द के अतिरिक्त और जो भी अभ्यास है, उनसे मन की ही ताकते जागती है.
जब सुरत तीसरे टिल के ऊपर शब्द के घोर को सुनती है, तब ही मन में जगत के प्रति उदासीनता आती है, मन गलता है और आशा-तृष्णा का नाश होता है.
जब से अनहद घोर सुनी .
इंद्री थकित गलित मन हुआ ,
आसा सकल भुनी .
इस तरह मन में दीनता आती है और वह स्वयं को तिनके से भी कम आंकता है. तो जो राधास्वामी दयाल की सरन में आ कर और उनके बल का सहारा ले कर सत्य पथ पर बढ़ते हैं, उनको दयाल अपनी दया से अवश्य ही एक दिन दीनता बख्शते हैं.
राधास्वामी दयाल की दया, राधास्वामी सदा सही.
राधास्वामी जी
राधास्वामी हेरिटेज

संतमत विश्वविध्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित.

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