Saturday, 30 May 2015

अंतर्यात्रा ..... २४ 

निरख – परख .....

सत्य पद के खोजी को, जगत में सुख-दुःख की जो स्थिति है, उसे खुली आँखों और खुले दिमाग से देखना चाहिए. यानी जो भी चीज या बात वास्तव में जिस रूप में है, उसे उसके उसी वास्तविक रूप में ही देखना उचित है. जब तक जीवन है, जीना तो इसी जगत में ही है, पर जब इसकी मलीनता और नश्वरता का असली चेहरा नज़र आने लगेगा तो इन बातों की व्यर्थता को जान कर, इनमे आसक्ति और संसार का मोह, धीरे-धीरे अपने आप दूर होता जाएगा. संभव है कि काल और माया के झोको में कभी गिर भी जाय, पर फिर संभल जाएगा. इसी नज़र को निरख कहते हैं.
निरख आ जाने पर जीव जीव परख कर सकता है कि दुनिया जिन हालातों से गुज़र रही है, उनका उस पर क्या असर पड़ता है. फिर तो सारा संसार ही उसको बैरी नज़र आने लगेगा. एक बार तो सब को बैरी बनाना ही पड़ेगा. जब जगत देख लेगा कि अब ये हमारे बस का नहीं, तब सभी मीत बन कर साथ देने लगते हैं. देखने में यह दोनों ही बाते एक दूसरे के विपरीत मालूम देती हैं, पर हैं अटल. जब तक काल का कर्जा बना रहेगा, मन की गलियों से पीछा न छूटेगा.
सतगुरु स्वामी सदा सहाय .....
राधास्वामी जी,
राधास्वामी हेरिटेज .
संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित

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