Saturday, 30 May 2015

अंतर्यात्रा ..... १४ 
सारा जग है प्रेम पसारा .....
नशा भी खालिस और नशेबाज भी खालिस चाहिए, वोही प्रेम का मर्म जान सकता है. और धर्म निभा सकता है 
जगत में जो कुछ भी है और स्वयं जगत की भी, उत्त्पत्ति, विकास और पोषण, प्रेम से ही है. और प्रेम ही जगत से उबारता भी है. जगत की लालसाओं में अचेत जीव में, प्रेम भाव का चेता, भक्ति से ही आता है. और जब चेता तब संसार के सभी भोग-विलास फीके लगने लगते हैं. मन तो पारे की तरह चंचल होता है, इसे रोक कर भक्ति में लगाना, ऐसा ही मुश्किल है, जैसे पारे को भस्म बनाना. मन तो गुरु-भक्ति बांध कर ही रुक पाता है.
भक्ति और प्रेम दो नहीं पर एक ही है, पर व्यवहार में दो रूपों में नज़र आते है और अंत में जा कर एक हो जाते है. दरअसल भक्ति व्यवहार है और प्रेम भाव है. तो भक्ति, प्रेम का ही व्यवहारिक रूप है. जो की स्तर दर स्तर स्थूल से सूक्ष्म, फिर उससे भी सूक्ष्म और अत्यंत सूक्ष्म हो कर, प्रेम भाव में समाहित हो जाती है.
इस तरह हम समझ सकते हैं कि भक्ति ही प्रेम का मार्ग भी है और पथ भी. जिसने भी अपने भीतर भक्ति के रस को पा लिया, उसे संसार के बाकी सभी रस और भोग-विलास खुद-बा-खुद फीके और बे-मज़ा लगने लगते हैं. वास्तव में रस तो उस शब्द-धुन-अम्रत धार में है जो ऊपरी मंडलों से आ रही है. नशा तो जगत का मजा है, सुन्न पद पर इस नशे की मस्ती भर रह जाती है और इससे भी आगे सत्तलोक में ये मस्ती भी जाती रहती है, सिर्फ सुरूर ही रह जाता है – यही प्रेम है, खालिस प्रेम. तो जैसे-जैसे सुरत ऊपरी मंडलों में उठती जाती है, रूहानी नशे का यह सुरूर भी बढ़ता जाता है.
मन की फितरत ही चंचल है, जब तक कोई ताकत इस मन को खींच कर बाँध न ले यह डोलता ही फिरता है. मन सिर्फ गुरु भक्ति से ही बांध सकता है, पर बेहद मुश्किल काम है, जीते जी मरने के सामान है. इन बातों का यह मतलब हरगिज़ नहीं की भक्त को संसार के सुखों से वंचित रहना होगा, बल्कि सच तो ये है की, मालिक ने सभी सुख, अपने भक्तों के लिए ही पैदा किये हैं.
कुरआन शरीफ की आयत “लौलाक” में खुदा ने फरमाया है की – “मैंने जो कुछ पैदा किया है वो, ऐ मेरे महबूब, तेरे लिए पैदा किया है.” लेकिन हमे इन सुखों में बहुत ही संभल कर वर्तना होता है. उपयोग और उपभोग के फर्क को समझे बिना, ऐसा कर पाना कतई संभव नहीं.
राधास्वामी सदा सहाय.....
राधास्वामी जी
राधास्वामी सदा सहाय .....
राधास्वामी हेरिटेज
संतमत विश्वविध्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित .

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