Sunday, 24 January 2016

अंतर यात्रा 44
क्या ऐसा हो सकता है ..........
शंका संशय दुख छल कपट तथा अज्ञानता के इस देश मेँ ना तो किसी को अपने काम के फल का ज्ञान होता है और ना ही यह पता होता है कि वह कहाँ से आया है और किधर जाना है। जीवन का आधार 4 खान 84 लाख योनियो मे कहीँ भी उसे शांति प्राप्त नहीँ होती । स्वामी जी महाराज कहते हैँ कि केवल संत ही उस अलख अगम अनामी के भेद को खोलते है और जीव को दयाल से मिलाकर और माया के बंधनो और उसके कारण पैदा होने वाले दुखो से बचा सकते हैँ राधास्वामी दयाल से मिलने की पहली शर्त उनसे मिलने के लिए सच्ची लगन का होना है केवल इस लगन से ही मन निर्मल होता है और जीव को ज्ञान हो जाता है कि धार्मिक रीति रिवाज कर्मकांड सब व्यर्थ की बातेँ हैँ फिर इसमेँ उसकी कैद से छूटने की शक्ति भी उत्पन्न हो जाती है राधास्वामी दयल की अपार दया के बिना जीव जन्म मरण के दुखो और बंधनो से छुटकारा नहीँ पा सकता ।शरीर के नो दुआरो मे चेतना के परवाह को रोक कर और चेतना की धार को उल्टा कर पूरी तरह से तीसरे तिल मे एकाग्रहः कर के ही मनुष्य इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर सकता है । अंतर यात्रा पर चलने से उसे सुख शांति की प्राप्ति हो जाती है और केवल पठन पाठन और सत्संग पर निर्भर नहीं रैहना पड़ता ।
जब यह अवस्था आ जाती है तो जिव रीत रिवाज़ कर्मकांड मान सम्मान आदि से स्वतः ही दूर हो जाता है नाम भक्ति से ही उसे सच्चे ज्ञान की प्राप्ति हो सकती है नाम अनमोल रतन है पर केवल संत ही उसका सच्चा मूल्य जानते हैँ केवल नाम के आधार पर ही त्रिलोकी की हद को पार करके उस अनादि अनंत अगम दयाल को भी जान सकता है ।यह विधि सूरत शब्द योग कहलाती है और यह बड़े से बड़े पापी को भी संत बना सकती है। गुरु के प्रति असीम प्रेम तथा अपने आप को पूरी तरह सद्गुरु को समर्पित कर देना इस मार्ग पर सफलता की कुंजी है । बिना प्रीत व प्रतीत के कुछ काम नहीँ बनता ।
राधास्वामी दयाल की दया राधास्वामी सदा सहाय
राधास्वामी हेरिटेज
(संतमत विष्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित )

1 Comments:

At 30 January 2022 at 18:18 , Anonymous Anonymous said...

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