अंतर यात्रा 45
नाम ना जाने कोय ..............
बहुत भारी भीड़ देखता हूँ सभी को नाम चाहिए पर किसका नाम चाहिए ?और क्यों चाहिए ? क्या करोगे नाम का ?आप सभी को पता है परम पुरुष पूर्ण धनी हुजूर स्वामी जी महाराज ने फरमाया है की नाम मेँ कोई शक्ति नहीँ जो नाम मे ही शक्ति होती तो हजारो रट रहे हैँ किसी का तो भला होता। आप को समझना यह है कि हम चाहते क्या हैँ की नाम आखिर है क्या और किसका है यूँ बहु तेरे नाम है मेरा भी नाम है आपका भी नाम है सबका नाम है तो नाम से क्या होता है नाम वही सच्चा है जो अनामी है बाकी तो सब दुनियादारी के नाम है संतमत मेँ पांच नाम के सिमरन को बताया गया है यह पांच नाम क्या है किसके हैँ और क्योँ हैं सबसे पहले तो खुद से पूछो कि तुम्हें क्योँ चाहिए खाली भीड़ लगा लेना यह कि नाम दे दो नाम दे दो मेहर कर दो दया कर दो यह एक देखा देखी रीस बनती चली जा रही है और नाम का भेद पता नहीँ किसी को सभी को अपने भौतिक साधन को पूरा करने के लिए नाम चाहिए सोचते हैँ कि नाम सिमरन से भौतिक कष्ट क्लेश और दुख दर्द दूर हो जाएंगे तुम्हरी आँखों का धोखा है यह,सच्चे नाम का भेद अति भारी हैँ उसे संभाल पाना हर किसी के बस की बात नहीँ है सिलाई तो कपड़े की करना चाहते हो और मांगते तलवार हो कपड़ा तलवार से नहीँ सिला जाता नाम की धार तो हर भौतिकता को काट देगी तुम्हें निर्मोही बना देगी यह दुनिया पराई लगने लगेगी यहाँ मन नहीँ लगेगा यह मन तो फिर जाएगा यह देश पराया हो जाएगा । तुम अब हर वक्त तड़पते फिरोगे घर वापसी की लौ जग जाएगी तब यहाँ क्या करोगे यही है नाम का प्रताप। तो नाम क्या है
पांच नाम दरसल मार्ग के 5 पड़ावो के नाम है पहला नाम जो तुम लेते हो वह तो ब्रम्हांड की एक स्थिति है दूसरा नाम अक्षर ब्रह्म है तीसरा नाम सुन्न पद का है चौथा नाम भंवर गुफा का है और पांचवाँ नाम सतलोक मेँ गाज़ रहा है यही वह पांच नाम है जिंहेँ तुम रट रहे हो यह तो ऐसा ही है कि हम अपने लक्ष्य के रास्ते मेँ पड़ने वाले मुकाम को याद कर ले ताकि लक्ष्य से भटक ना जाएँ पर ये पड़ाव हमारे लक्ष्य नहीँ है लक्ष्य तो हमारा राधास्वामी दयाल है और वह अनामी पुरुष जिसका कोई भी नाम नहीँ है वह तो अनामी है तब यह समझना चाहिए की अनामी का नाम राधास्वामी कैसे हुआ यही सच्चा नाम है । इस बात को समझना ज़रुरी है की राधास्वामी नाम को धव्नात्मक बताया गया है तो जिसे तुम लिखते और पढ़ते भी हो और बोलते भी हो वह नाम तो वर्णात्मक हुआ ।अब सोचना यह है कि राधा स्वामी नाम जिसे धनात्मक कहा गया है और यही अनामी भी है तो जो अनामी है उसका कोई नाम कैसे हो सकता है दरअसल यह सभी पांच नाम मार्ग मेँ पढ़ने वाले पड़ाव के है मंजिल तो राधास्वामी दयाल ही है और वह अनामी है इसे इस तरह समझो कि शब्द की धार तो सतलोक से जारी हुई है तो अलख और अगम मेँ कौन सा शब्द जारी है यही शब्द का वास्तविक भेद है मुझे नहीँ लगता अभी आम सत्संगी इस भेद को समझने की योग्यता रखता है मेरे एक मित्र जो बीकानेर से है उनकी इच्छा थी कि मैँ इस भेद को सभी जिज्ञासु सत्संगियों के हित मेँ प्रकट करुँ कोई विरला ही होगा जो इस भेद को समझ सकेगा राधास्वामी कोई पद या मुकाम नहीँ है राधा स्वामी का अर्थ उस स्थिति से है जबकि सुरत स्वामी मेँ एक हो जाती है यही राधा स्वामी है जब सुरत धारा उलट कर शब्द रूप स्वामी मे एक हो जाती है। अब तक राधा और स्वामी दो हैं और जब एक हो गए तब राधास्वामी हो गई तो इस स्थिति मेँ कोई शब्द नहीँ है तो क्योंकि सुरत जो कि शब्द धारा ही है उलट कर जब वापस शब्द मे समा गई तब शब्द कहाँ रहा ।यह तो मौन की स्थिति है जी ।मौन की इस कशिश से जो लहर उठ रही है वही अगम और अलख मे कारण और सूक्ष्म रूप मे व्याप्त है और सतलोक मे शब्द रूप मे प्रगट हो रही है। यही कारण है की दयाल अनामी पुरुष है और राधा स्वामी नाम धनात्मक है ना कि वर्णआत्मक। इस तरह हम सारी ज़िंदगी जिन पांच नामो का सिमरन करते हैँ हमेँ सतलोक पहुंचा सकते हैँ । पर यह सच्ची और पूरी मुक्ति नहीं है।सच्ची मुक्ति तो राधास्वामी दयाल मेँ एक रुप होकर ही प्राप्त होती है ।तो सतलोक पहुंचकर अब जबकि राधास्वामी नाम का भेद प्रकट किया जा चुका हैं तो बिना अगम को पार किये किसी का भी सच्चा और पूरा उद्धार नहीँ हो सकता ।जो जिज्ञासु को आवश्यक है की अभ्यास मेँ शब्द को सुनने पर अधिक तवज्जो दे ।नाम सिमरन तो सिर्फ मन को जगत की दिशा से मोड़ने के लिए ही है। पर वह भी सच्चा और पूरा होना जरुरी है मैँ पाता हूँ कि राधा स्वामी मत के सभी प्रसारक केंद्र अलग अलग नाम बता रहे हैँ और खुद को संत सतगुरु प्रचारित कर रहे हैँ सो जो नाम सच्चा है वह एक है और उसमे कोई फर्क नहीँ है। इसलिए अपनी नजर मंजिल पर रखो नाम पर नहीँ मालिक की अब यही मौज है
राधास्वामी सदा सहाय
राधास्वामी जी
(राधास्वामी हेरिटेज संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
नाम ना जाने कोय ..............
बहुत भारी भीड़ देखता हूँ सभी को नाम चाहिए पर किसका नाम चाहिए ?और क्यों चाहिए ? क्या करोगे नाम का ?आप सभी को पता है परम पुरुष पूर्ण धनी हुजूर स्वामी जी महाराज ने फरमाया है की नाम मेँ कोई शक्ति नहीँ जो नाम मे ही शक्ति होती तो हजारो रट रहे हैँ किसी का तो भला होता। आप को समझना यह है कि हम चाहते क्या हैँ की नाम आखिर है क्या और किसका है यूँ बहु तेरे नाम है मेरा भी नाम है आपका भी नाम है सबका नाम है तो नाम से क्या होता है नाम वही सच्चा है जो अनामी है बाकी तो सब दुनियादारी के नाम है संतमत मेँ पांच नाम के सिमरन को बताया गया है यह पांच नाम क्या है किसके हैँ और क्योँ हैं सबसे पहले तो खुद से पूछो कि तुम्हें क्योँ चाहिए खाली भीड़ लगा लेना यह कि नाम दे दो नाम दे दो मेहर कर दो दया कर दो यह एक देखा देखी रीस बनती चली जा रही है और नाम का भेद पता नहीँ किसी को सभी को अपने भौतिक साधन को पूरा करने के लिए नाम चाहिए सोचते हैँ कि नाम सिमरन से भौतिक कष्ट क्लेश और दुख दर्द दूर हो जाएंगे तुम्हरी आँखों का धोखा है यह,सच्चे नाम का भेद अति भारी हैँ उसे संभाल पाना हर किसी के बस की बात नहीँ है सिलाई तो कपड़े की करना चाहते हो और मांगते तलवार हो कपड़ा तलवार से नहीँ सिला जाता नाम की धार तो हर भौतिकता को काट देगी तुम्हें निर्मोही बना देगी यह दुनिया पराई लगने लगेगी यहाँ मन नहीँ लगेगा यह मन तो फिर जाएगा यह देश पराया हो जाएगा । तुम अब हर वक्त तड़पते फिरोगे घर वापसी की लौ जग जाएगी तब यहाँ क्या करोगे यही है नाम का प्रताप। तो नाम क्या है
पांच नाम दरसल मार्ग के 5 पड़ावो के नाम है पहला नाम जो तुम लेते हो वह तो ब्रम्हांड की एक स्थिति है दूसरा नाम अक्षर ब्रह्म है तीसरा नाम सुन्न पद का है चौथा नाम भंवर गुफा का है और पांचवाँ नाम सतलोक मेँ गाज़ रहा है यही वह पांच नाम है जिंहेँ तुम रट रहे हो यह तो ऐसा ही है कि हम अपने लक्ष्य के रास्ते मेँ पड़ने वाले मुकाम को याद कर ले ताकि लक्ष्य से भटक ना जाएँ पर ये पड़ाव हमारे लक्ष्य नहीँ है लक्ष्य तो हमारा राधास्वामी दयाल है और वह अनामी पुरुष जिसका कोई भी नाम नहीँ है वह तो अनामी है तब यह समझना चाहिए की अनामी का नाम राधास्वामी कैसे हुआ यही सच्चा नाम है । इस बात को समझना ज़रुरी है की राधास्वामी नाम को धव्नात्मक बताया गया है तो जिसे तुम लिखते और पढ़ते भी हो और बोलते भी हो वह नाम तो वर्णात्मक हुआ ।अब सोचना यह है कि राधा स्वामी नाम जिसे धनात्मक कहा गया है और यही अनामी भी है तो जो अनामी है उसका कोई नाम कैसे हो सकता है दरअसल यह सभी पांच नाम मार्ग मेँ पढ़ने वाले पड़ाव के है मंजिल तो राधास्वामी दयाल ही है और वह अनामी है इसे इस तरह समझो कि शब्द की धार तो सतलोक से जारी हुई है तो अलख और अगम मेँ कौन सा शब्द जारी है यही शब्द का वास्तविक भेद है मुझे नहीँ लगता अभी आम सत्संगी इस भेद को समझने की योग्यता रखता है मेरे एक मित्र जो बीकानेर से है उनकी इच्छा थी कि मैँ इस भेद को सभी जिज्ञासु सत्संगियों के हित मेँ प्रकट करुँ कोई विरला ही होगा जो इस भेद को समझ सकेगा राधास्वामी कोई पद या मुकाम नहीँ है राधा स्वामी का अर्थ उस स्थिति से है जबकि सुरत स्वामी मेँ एक हो जाती है यही राधा स्वामी है जब सुरत धारा उलट कर शब्द रूप स्वामी मे एक हो जाती है। अब तक राधा और स्वामी दो हैं और जब एक हो गए तब राधास्वामी हो गई तो इस स्थिति मेँ कोई शब्द नहीँ है तो क्योंकि सुरत जो कि शब्द धारा ही है उलट कर जब वापस शब्द मे समा गई तब शब्द कहाँ रहा ।यह तो मौन की स्थिति है जी ।मौन की इस कशिश से जो लहर उठ रही है वही अगम और अलख मे कारण और सूक्ष्म रूप मे व्याप्त है और सतलोक मे शब्द रूप मे प्रगट हो रही है। यही कारण है की दयाल अनामी पुरुष है और राधा स्वामी नाम धनात्मक है ना कि वर्णआत्मक। इस तरह हम सारी ज़िंदगी जिन पांच नामो का सिमरन करते हैँ हमेँ सतलोक पहुंचा सकते हैँ । पर यह सच्ची और पूरी मुक्ति नहीं है।सच्ची मुक्ति तो राधास्वामी दयाल मेँ एक रुप होकर ही प्राप्त होती है ।तो सतलोक पहुंचकर अब जबकि राधास्वामी नाम का भेद प्रकट किया जा चुका हैं तो बिना अगम को पार किये किसी का भी सच्चा और पूरा उद्धार नहीँ हो सकता ।जो जिज्ञासु को आवश्यक है की अभ्यास मेँ शब्द को सुनने पर अधिक तवज्जो दे ।नाम सिमरन तो सिर्फ मन को जगत की दिशा से मोड़ने के लिए ही है। पर वह भी सच्चा और पूरा होना जरुरी है मैँ पाता हूँ कि राधा स्वामी मत के सभी प्रसारक केंद्र अलग अलग नाम बता रहे हैँ और खुद को संत सतगुरु प्रचारित कर रहे हैँ सो जो नाम सच्चा है वह एक है और उसमे कोई फर्क नहीँ है। इसलिए अपनी नजर मंजिल पर रखो नाम पर नहीँ मालिक की अब यही मौज है
राधास्वामी सदा सहाय
राधास्वामी जी
(राधास्वामी हेरिटेज संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित)
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