Sunday, 24 January 2016

अंतर यात्रा -46
अजब प्रेम की गजब कहानी.............
मालिक प्रेम रुप है और उद्धार भी प्रेम के आकर्षण से ही होता है मालिक का भेद इस देश की विद्या बुद्धि से नहीँ जाना जा सकता क्योंकि बुद्धि की एक सीमा है और हमेशा एक जैसी नहीँ रहती इसका सबूत हमेँ रोजमर्रा के जीवन मेँ होने वाली तबदीली से पता चलता रहता है उद्धार तो प्रेम के आकर्षण से ही होगा मालिक प्रेम का महा समूह है प्रेम मेँ अपने आप मेँ समाए रहने की शक्ति होती है मालिक भी अपने मेँ आप समाया हुआ है हर्ष आनंद सत्यता चैतंयता सब प्रेम के ही गुण है पहले प्रेम है या चैतंयता यह फिजूल की बात है। दरअसल प्रेम ही पहले है प्रेम का ही आकर्षण ऊपर से नीचे तक रचना के हर दर्जे मेँ मौजूद है कोई भी उसके आकर्षण से खाली नहीँ है फर्क सिर्फ कमी और ज्यादा का है प्रेम के ही आकर्षण मेँ रचना कायम है और उसी की शक्ति से सभी हरकत मेँ मौजूद है
जगत की विद्या और बुद्धि से मालिक का भेद नहीँ जाना जा सकता क्योंकि मनुष्य की ज्ञान इंद्रियाँ सिर्फ इसी मंडल मेँ काम कर सकती हैँ बुद्धि अंतकरण के घाट तक जहाँ मनुष्य जागृत अवस्था मेँ बहोश कारवाई कर रहा है वहीँ तक काम कर सकती है अंतकरण से परे बुद्धि की गति नहीँ है इससे आगे जाने पर इंसान बेहोश हो सकता है जब यह हालात है तो मालिक के बारे मेँ अन्तःकरण के घाट पर बैठे बैठे भला क्या जाना जा सकता है
जगत के निर्णय और बुद्धि से अंतर के भेद को नहीँ जाना जा सकता बाहर जगत मेँ चाहे जितने भी प्रयोग योग कर लो उसे अंदर का कुछ भी हाल मालूम नहीँ चलता इसके लिए अंतर मेँ प्रयोग करना चाहिए और इसके लिए मालिक ने मनुष्य का चोला ही सबसे उत्तम बनाया है क्योंकि वह छोटे पैमाने पर सारी रचना का एक नमूना ही है सतलोक के नीचे रचना मेँ यही चोला सर्वोत्तम और सर्वश्रेष्ठ है इसलिए इस चोले को पाकर बाहर क्यों भटकते हो? जब इस चोले मेँ सब मौजूद है तो अंतर मेँ चलना देखना और आंकलन करना सीखना ही चाहिए
यह देश तो धोके का देश है यहाँ सिर्फ नज़र का धोखा ही है यहाँ के भोग सुख वगैरा सब माया का जाल है यहाँ कुछ भी स्थाई नहीँ पर परमार्थ की कार्रवाई के लिए यहाँ के सभी काम काज को छोड़ कर बैठ जाने की जरुरत नहीँ है सब काम करते रहो मगर किसी के मोह मेँ मत पड़ो हर काम अपने कर्तव्य और दायित्व मानकर ही करो अगर दिल मेँ मालिक से मिलने की सच्ची चाह है और मालिक से मिलने का बंदोबस्त ना हो तो मालिक पर इशारा होता है हर एक के समय के अनुसार मालिक सबके लिए इंतजाम करता है सब महात्मा पीर पैगंबर इस धरा पर बराबर आते रहेँ हैँ और अपने अपने स्तर के मुताबिक परमारथी कार्यवाही जीव से कराते रहेँ हैँ लेकिन अब उनकी टेक बांधने से कुछ फायदा नहीँ हो सकता लुकमान हकीम जब मौजूद थे तब उनके पास जाने से कुछ फायदा हो सकता था मगर अब तो वो है नहीं तो उनकी तारीफ करने से या उनकी तस्वीर के आगे बीमारी का बयान करके कोई फायदा नहीँ हो सकता जो हकीम अब मौजूद है उसकी तलाश करनी चाहिए उसके पास जाने से फायदा होगा और इस बात को समझ लेना चाहिए कि रुहानी तरक्की बराबर हो रही हैँ और जैसे जैसे जीव का अधिकार बढ़ता जाता है ऊंचे दर्जे की कारवाई करने वाले पुरुष आते रहते हैँ।
जब तुम अपने आप मेँ ही समाय रहना सीख जाओगे तब तुम भी प्रेम स्वरुप हो जाओगे।
राधा स्वामी जी।
राधास्वामी हेरिटेज ।
(संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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