अंतरयात्रा-49
संतो की हर रोज दिवाली ........ उत्सव का अर्थ है धन्यवाद, उत्सव का अर्थ है अनुग्रह, उत्सव का अर्थ है मुझ अपात्र को इतना दिया, इतना जिसकी ना मै कल्पना कर सकता था, ना कामना ।मेरी झोली में पूरा आकाश भर दिया, मेरे हृदय में पूरा अस्तित्व उड़ेल दिया । मेरे इस छोटे से घट मे शाश्वत अमृत ढाल दिया। अब मैं क्या करुं? इस अपुर आनंद की स्थिति में क्या नाचूँगा नहीं ? गाऊंगा नहीं ?उल्लास, उमंग ,उत्साह क्या ना जागेगा? हजार -हजार रूपों मे जागेगा।इसी का नाम उत्सव है। आनंद का अनुभव और फिर वाणी से उसे कहने का उपाय ना मिलने के कारण उत्सव पैदा होता है। उत्सव आनंद की अभिव्यक्ति है शब्द में नहीं, पर ,जीवन मे और आचरण में। यहां उत्सव पैदा हुआ है । और संभवता , परमात्मा भी तुम्हारे भीतर उतर आय तो भी तुम्हारा उत्सव तो बहुत कुछ वैसा ही होगा जैसा जगत का होता है। किसी को धन मिल जाए और वह नाच उठे , मीरा को कृष्ण मिले और मीरा नाच उठी। अगर तुम नाचना ही देखोगे तो दोनो का नाचना एक जैसा ही मालूम होगा, क्योंकि नाच तो देह से प्रकट हो रहा है। कारण भिन्न-भिन्न है। लेकिन बाहर से तो कारण का पता नहीं चलेगा। और भीतर उतरने की तैयारी किस -किस की है? किसके पास समय है? मन डरता है, भीतर उतरने से, की कहीं डूब न जाऊँ। मैं तो मानता हूं कि विस्तीर्ण होना ही शब्द के निकट आने का उपाय है ।"शब्द" विस्तार का ही एक रुप है । शब्द का अर्थ होता है जो विस्तीर्ण होता चला जाए जिसके विस्तार का कोई अंत ही ना हो। "आनंद" ही फैलाव है । "दुख " का अर्थ है सिकुड़ना। जब तुम दुखी होते हो तो बिल्कुल सिकुण जाते हो , जब तुम दुखी होते हो तुम सभी द्वार बंद कर के एक कोने में पड़े रहते हो कोई बोले ना कोई न देखे कोई दिखाई ना पड़े बहुत दुख की अवस्था में आदमी आत्मघात तक कर लेता है। यह भी सिकुड़ने का ही अंतिम उपाय है ।ऐसा सिकुण जाता है कि अब कुछ देखना ना पड़े, रोशनी सूरज की नहीं दिखे किसी का चेहरा ना दिखें न प्रकृति न खिलते हुये फूल ना रंग ना राग जब अपना गुलाब ही न खिला, जब अपना सूरज ही ना उगा, जब अपना मन ही न जागा तब सूरत कहाँ, वह तो सोती है। यही है अंतर का प्रकाश सहस्त्र दल कव्ल का खिलना आनंद आत्मा का विस्तार है। आत्मा इतनी बड़ी हो जाती है कि समस्त ग्रह-नक्षत्र चांद सितारे उसके भीतर समा जाते है । शब्द धुन के साथ एक हो जाना ही सच्चा आनंद है । लेकिन आनंद को संभाल पाना बड़ा कठिन है, आनंद तो छलके गा । आनंद तो अभिव्यक्त हो कर रहेगा। आनंद तो गाजेगा, हर धुन मे गाजेगा, हर घुन मे बाजेगा और हर सूरत इस आनंद रूप" शब्द धुन धार " के संग नाचेगी ही नाचेगी । यही सच्चा आत्मिक आनंद, तृप्ति और एक सूरत का अनन्त दीपउत्सव है । राधास्वामी सदा सहाय । राधास्वामी जी। (स्वामी हेरिटेज संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित) |
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