Sunday, 24 January 2016

अंतरयात्रा -51
प्रेम दात दीजे मोहे स्वामी ..........
जो जीव अपना सच्चा और पूरा उद्धार चाहता है तो जरूरी है कि इन कुछ बातों का निश्चय द्रढ़ करके, उसी के अनुसार मालिक के चरणों में प्रीत लगाकर परमार्थ की राह में आगे बढ़े।
सबसे पहले तो अपने मन और हृदय में इस बात की द्रढ़ता को निश्चित कर ले की कुल मालिक राधास्वामी दयाल सर्व समर्थ और पूर्ण है ,जिन्होंने धरा पर नरदेह धारण कर जीवो के पूर्ण उद्धार के निमित्त संतमत राधा स्वामी का उपदेश दिया और अलख व अगम के भेदो को लखाया। दयाल के इसी नरदेह स्वरूप को प्रेमी सत्संगी परम पुरुष पूरण धनी समद हुज़ूर स्वामी जी महाराज के नाम से जानते हैं।
हर एक जीव में मौजूद सुरत राधास्वामी दयाल का अंश है ।
पद राधास्वामी ही हर सुरत का निज घर है और आदि में वहीँ से मौज प्रकट हुई जो कि सतलोक में शब्द रूप में गाजी। और फिर नीचे उतरती हुई स्तर दर स्तर मंडल बांधते हुए रचना होती चली गई।
यह देश माया और काल पुरुष का है जिसमें हर पल हर दिन बदलाव होता रहता है ,जिस कारण हर देह और स्वरूप नित परिवर्तनशील और नाशमान है। इसलिए इस जगत में सदा सुख की आशा और उसके पदार्थों को अपना समझना भारी भूल और सुरत की अचेत अवस्था ही है ।
मनुष्य देह कुल मालिक राधास्वामी दयाल की मौज से अंतिम रचना है ।इसलिए यह स्वयम में संपूर्ण रचना का एक उत्कृष्ट नमुना या मॉडल ही है। और मनुष्य देह में ही सुरत के घर वापसी का मार्ग खुला है ,जिसे दयाल देश कि किसी भेदी और वासी सुरत की सहायता और मार्गदर्शन में ही निज घर वापसी का भेद और मार्ग मिल सकता है। इसी धुर-धाम की वासी और देह मे चैतन्य सुरत को ही " संत सदगुरु वक्त" कहते हैं ।
हर सच्चे प्रेमी परमारथी को ,जो सच्चे मालिक के चरणों में पहुंचना चाहता है उसे संत सदगुरु वक्त और उनके प्रेमी भक्तों के संग साथ के प्रति सदा प्रयासरत रहना चाहिए । इस तरह अंतर मार्ग पर चलने का भेद और युक्ति पाकर अंतर मार्ग पर चलने का नित अभ्यास करना चाहिए, यहीं "अंतर यात्रा" है।
बिना सुरत शब्द अभ्यास के सच्चा और पूर्ण उद्धार किसी भी हालत में संभव नहीं है क्योंकि सुरत , शब्द की धार के संग ही सतलोक से उतरी है और शब्द धार के आसरे ही उलट कर सतलोक वापस पहुंच सकती है ।बाकी की अन्य सभी धाराएं माया की हैं, जो की अन्ततः काल का ग्रास बनकर यहीं खत्म हो जाती है।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हेरिटेज
(संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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