Sunday, 24 January 2016

चैते कोई चतुर सुजान..............
अंतरयात्रा 48
पद राधास्वामी वास्तव मे कोई रचना नहीं है बल्कि हर रचना रूहानी यानि आत्मिक जगत जिसे संतो ने दयाल देश कहा है, के होने का कारण है।इसी दयाल देश की वासी सुरत जो कुल मालिक राधास्वामी दयाल की मौज से जगत को देह रूप मे धारण किया हुआ है वही संत है। यह धरा कभी संत नहीं कभी भी शब्द स्वरूप संत रूप से रहित नहीं संत तो जगत की आत्मा है जिन्होंने जगत को देह रूप में धारण किया हुआ है जिस प्रकार देह में दो आत्माये में नहीं होती उसी प्रकार एक ही वक्त में जगत में भी दो संत नहीं होते। मालिक की मौज से जब व प्रकट रूप मे कार्रवाई करते है, तब वे संत सतगुरु रूप में जाने जाते है, यूं तो कथावाचक जिन्हें तुम वाचक ज्ञानी और भेष कह सकते हो बहुत सारे उपलब्ध है और सुलभ साधना द्वारा शहर शहर डेरे तंबू लगाकर सब अपनी ही पहचान का प्रचार कर रहे है ,ना कि दयाल का ।पर्चे भरवा कर अपनी संस्थाओं का मेंबर बना रहे है ना की सत्य देश का सो स्पष्ट कहता हूं -सावधान ।
अनादि पुरुष राधास्वामी दयाल से जब मौज उठती है तब अगम और अलख के मण्डलों को पार करते हुए सतलोक से प्रकाश की किरण शब्द रूप में प्रकट होती है। यही किरण जब धरा पर पहुंचती है तब संतरूप में प्रकट होती है और सदगुरू रूप धारण कर, अधिकारी और योग्य स्त्रोत के उद्धार के निमित्त कार्यवाही करती है ।संत जगत की किसी भी सवैधानिक ,वैधानिक या भौतिक , सामाजिक व्यवस्था के आधीन नहीं है ,बल्कि जगत की समस्त व्यवस्थाएं संत स्वरुप के आधीन होती है। जगत में गुरु का पद अति भारी है ।संत सूरत में जगत और देह के खोलो में रह कर, जब तक मन में किसी के प्रति गुरु भाव न लाएगी ,उसका भी मन जगत में ना फिरेगा और ना ही सामर्थ ही पूर्ण रूप से खुल सकेगी । कबीर साहब जो की सत्पुरुष का अवतरण हुए, उंहोन्ने रामानुज जी से विधिवत दीक्षा नहीं ली थी और ना ही परम पुरुष दयाल का अवतरण हुजूर स्वामी जी महाराज किसी के भी द्वारा दीक्षित थे ,फिर भी तुलसी साहब हाथरस वाले के गुरमुख शिष्य गिरधारी लाल जी के प्रति भाव पूर्ण सम्मान व्यक्त करते थे।
इससे स्पष्ट है कि संतमत एक निश्चित सिद्धांत पर आधारित है ,जिसमें राई- रत्ती भी परिवर्तन नहीं हो सकता । परिवर्तन भौतिक जगत का नियम और भौतिक व्यवस्था है ,आत्मिक जगत सदा नित्य, चैतन्य और एक रेस है, आत्मिक जगत में कभी भी, कुछ भी परिवर्तित नहीं होता ।सो यदी लक्ष्य दयाल देश है, तो वाचक ज्ञानियों की , मालिक कुल के नाम से की जाने वाली भौतिक व्यवस्थाओं से सदा सावधान रहो ।
मन कई तरह के प्र्शन करता है। कि, क्या सतयुग,त्रेता और द्वापर में सतलोक से किरान फूटी? संत कलयुग में ही क्यों आन प्रकट हुए ? एक संत के देह छोड़ने पर दूसरा संत अचानक कैसे प्रकट हो जाता है? संत यदि नित्य और शब्द स्वरूप है ,तब उनकी देह पर काल का प्रभाव क्यों पड़ता है? आदि-आदि। हैं; इन सभी प्रश्नो और जिज्ञासाओ का उत्तर व समाधान है। पर यह बुद्धि की सीमाओ से परे, ज्ञान के क्षेत्र का विषय है ,जिसे लिख पढ़ कर नहीं जाना जा सकता। इसका समाधान तो सतगुरु पूरे के सत्संग में ही पूरी भक्ति के भाव और पूरे ध्यान के योग से ही प्राप्त होगा । राधास्वामी सदा सहाय
राधास्वामी जी
राधास्वामी हेरिटेज संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित।

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