Sunday, 24 January 2016

अंतर्यात्रा ..... २६

मन जाने तुम पुरुष पुराने .....

काल के जितने भी अवतार जगत में हुए हैं, उन सभी का मकसद यही था कि जो सामान्य से अधिक नकारात्मकता या विघ्नकारक मलीनता, जगत में विध्वंस पैदा कर सकती है, उसकी आवश्यकता के अनुसार सफाई कर दी जाय, जिससे कि जगत का कारोबार सुचारू रूप से चलता रहे. देखा कि सभी ने अंदरूनी तौर पर मुख्यतः इसी बात की रक्खी की जगत आबाद रहे और सुरत, जगत के घेरे यानी पुनर्जन्म के चक्र से छूटने न पाय. सिर्फ संत ही यह मकसद ले कर आये कि सुर्तों को चौरासी के मलीन घात से निकाल कर, अमर आनंद के देश में पहुंचाएं. मालिक की दया में कभी कोई कमी नहीं रही और न अब है, अगर कोई कमी है तो इस बात की कि इसे पाने की लिए मनुष्य अपनी जिस सामर्थ को लगा सकता है, उसे मालिक की दया से दूर हटाने वाले कामों में लगा रहा है और लगातार .....
काल ने हर युग में, अपने हर स्तर से अवतरित हो कर, जगत में इस संतुलन को बनाए रखने का असफल प्रयास किया है. समय और आवश्यकता के अनुसार कभी निचले स्तरों से और बाद में उच्च और अंत में उच्चतम स्तर से भी. मत्स्य, कश्च्प, वरहा, नरसिंह आदि निम्न स्तरों के और राम, क्रष्ण आदि ब्रह्म, पारब्रह्म स्तर के अवतार हुए है. गीता में क्रष्ण स्वमं अपना परिचय देते है की “मै बढ़ा हुआ काल हूँ” यही “महा काल” है. तो जो जिस स्तर से अवतार हुआ उसे उसी स्तर की सामर्थ हासिल थी. और स्पष्ट है की मलीनता बढ़ती ही गई. जिस कारन उच्च व उच्चतम स्तर से अवतरित होने की आवश्यकता बनी रही. पर महाकाल कृष्णावतार के बाद सीधे तौर पर संतों का आगमन नहीं हुआ, इससे पहले सतलोक और ब्रह्मांड की सीमा पर द्वार प्रहरी हज़रत ईसा का अवतरण होना, संतों के अवतरण की पुश्टी के लिए आवश्यक था. हज़रत स्वमं अपना परिचय देते हैं कि “द्वार मै हूँ.” , “ बिना मेरे कोई पिता (कुल का करता – सत पुरुष) तक नही पहुँच सकता.” पर कितने जिन्होंने “भंवर पुरुष” हज़रत की शिक्षाओं के रूहानी अर्थों को समझा ? इस जगत में काल ही “अव्वल हजूरा” है. यह हजूरा ही रूह की बंदिश है. संत, काल के इसी हुजूरे को भेद कर “रूह” को बरामद करते हैं. “साहेब कबीर” सत लोक से अवतरण – सत पुरुष का हैं, जिन्होंने सतनाम का भेद बताया और अलख, अगम को ध्याया. पर पूरा भेद सुरत की सच्ची और पूरी मुक्ति का ..... जीवों पर अति भारी दया कर के खुद दयाल नर देह में गुरु रूप हो कर आये और पांच नाम भेद और राधास्वामी नाम सुनाया. हर प्रेमी सत्संगी कुल मालिक दयाल को, परमपुरुष पूरण धनि समद हुज़ूर स्वामी जी महाराज के पवित्र नाम से जानता है.
“ राधास्वामी नाम जो गावे सोई तरे -
काल क्लेश सब नाश सुख पावे सब दुःख हरे. ”

राधास्वामी जी
राधास्वामी हेरिटेज
संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित

0 Comments:

Post a Comment

Subscribe to Post Comments [Atom]

<< Home