जिज्ञासा...... 20
संतमत कब से जारी हुआ है ...........
संतमत सदा से है। शुरूआत में इस मत का प्रगट उपदेश देने से पहले प्राणायाम आदि संयम्, नियम व षट चक्र आदि बिंधवाए जाते थे। जिनमें पारंगत होने में जीव की करीब-करीब सारी उम्र ही बीत जाती थी, तब भी कोई विरला ही षट संपत्ति अर्जित कर पाता था और बहुतों का काम पूरा न होता था। ऊपर से यदि संयम्-नियम में जरा सी भी चूक हो जाए तो कई तरह के खतरे और विघ्न पैदा हो जाते थे।. ...... तो कलयुग कबीर साहब आदि संतों ने प्राणायाम केे संयम्-नियम व षट चक्रों का भेदना छुड़ा दिया और आँखों के रास्ते से, सहसदलकँवल के पद से अभ्यास करवाना शुरू करवाया। साहब ने इस रास्ते का जिक्र अपनी बानी मेें कहीं इशारों में तो कहीं गुप्त कर के किया है। फिर..... आज से लगभग 155 साल पहले ( दिन बसंत पंचमी, जनवरी सन् 1861 ई0 )
को राधास्वामी दयाल परमपुरूष पूरनधनी मालिक कुुल नर देह धारी दयाल हुजूर स्वामी जी महाराज (सांसारिक नाम हुजूर शिव दयाल सिंह सेठ) ने हजारों जीवों की अर्ज कुबूल करते हुए, जीवोंं के उद्धार के निमित्त, आम तौर पर संतमार्ग के भेद को खुुल कर व स्पष्ट रूप से समझाया। जिसे सारे संसार ने राधास्वामी मत के नाम व रूप में जाना।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापपपना के प्रति समर्पित)
संतमत कब से जारी हुआ है ...........
संतमत सदा से है। शुरूआत में इस मत का प्रगट उपदेश देने से पहले प्राणायाम आदि संयम्, नियम व षट चक्र आदि बिंधवाए जाते थे। जिनमें पारंगत होने में जीव की करीब-करीब सारी उम्र ही बीत जाती थी, तब भी कोई विरला ही षट संपत्ति अर्जित कर पाता था और बहुतों का काम पूरा न होता था। ऊपर से यदि संयम्-नियम में जरा सी भी चूक हो जाए तो कई तरह के खतरे और विघ्न पैदा हो जाते थे।. ...... तो कलयुग कबीर साहब आदि संतों ने प्राणायाम केे संयम्-नियम व षट चक्रों का भेदना छुड़ा दिया और आँखों के रास्ते से, सहसदलकँवल के पद से अभ्यास करवाना शुरू करवाया। साहब ने इस रास्ते का जिक्र अपनी बानी मेें कहीं इशारों में तो कहीं गुप्त कर के किया है। फिर..... आज से लगभग 155 साल पहले ( दिन बसंत पंचमी, जनवरी सन् 1861 ई0 )
को राधास्वामी दयाल परमपुरूष पूरनधनी मालिक कुुल नर देह धारी दयाल हुजूर स्वामी जी महाराज (सांसारिक नाम हुजूर शिव दयाल सिंह सेठ) ने हजारों जीवों की अर्ज कुबूल करते हुए, जीवोंं के उद्धार के निमित्त, आम तौर पर संतमार्ग के भेद को खुुल कर व स्पष्ट रूप से समझाया। जिसे सारे संसार ने राधास्वामी मत के नाम व रूप में जाना।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापपपना के प्रति समर्पित)
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