जिज्ञासा ...... 19
जो लोग सुरत-शब्द मार्ग का अभ्यास नहीं करते, उनकी जीवात्मा की क्या गति होती है ....
जो कि अभ्यासी नहीं हैं, उनकी सुरत (जीवात्मा) पुनर्जन्म चक्र से नहीं छूट पाती है और आवा--गमन में बंधी - चौरासी भोगती रहती है। चाहे जीव कितना ही सिमरन कर ले, चाहे तो सारी उम्र ही क्यों न कर ले, पर यदि भजन न किया तो मन का मैल तो कुछ हद तक धुल सकता है पर जून यानी योनी न बचेगी। फिर अगले जनम सतगुरू से मेला कैसे हो .... और आगे की कमाई भी जाती रही। इसीलिये बार-बार कहता हू कि अभ्यास मुख्य है, सो भजन में जरूर बैठो जितना भी समय मिले।
सो जो अभ्यासी नहीं हैं उनकी जीवात्मा देह से निकलते ही आकाश में पहुंचते-पहुंचते देह और संसार की सुध भूल जाती है और अपनी जबर लालसाओं , इच्छाओं व कर्मों के अनुसार दूसरी देह या योनी को प्राप्त होती है।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधाललय की स्थापना के प्रति समर्पित)
जो लोग सुरत-शब्द मार्ग का अभ्यास नहीं करते, उनकी जीवात्मा की क्या गति होती है ....
जो कि अभ्यासी नहीं हैं, उनकी सुरत (जीवात्मा) पुनर्जन्म चक्र से नहीं छूट पाती है और आवा--गमन में बंधी - चौरासी भोगती रहती है। चाहे जीव कितना ही सिमरन कर ले, चाहे तो सारी उम्र ही क्यों न कर ले, पर यदि भजन न किया तो मन का मैल तो कुछ हद तक धुल सकता है पर जून यानी योनी न बचेगी। फिर अगले जनम सतगुरू से मेला कैसे हो .... और आगे की कमाई भी जाती रही। इसीलिये बार-बार कहता हू कि अभ्यास मुख्य है, सो भजन में जरूर बैठो जितना भी समय मिले।
सो जो अभ्यासी नहीं हैं उनकी जीवात्मा देह से निकलते ही आकाश में पहुंचते-पहुंचते देह और संसार की सुध भूल जाती है और अपनी जबर लालसाओं , इच्छाओं व कर्मों के अनुसार दूसरी देह या योनी को प्राप्त होती है।
राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधाललय की स्थापना के प्रति समर्पित)
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