Sunday, 29 June 2014

जिज्ञासा ....... 24

भक्ति का क्या अर्थ है .....

मालिक कुल के चरणों में प्रेम प्रीत और प्रतीत का होना ही भक्ति है।
यह सच्चे मन से तब ही हो सकती है जब कि अंतर में सतगुरू और मालिक के दर्शन मिलते है। ये दर्शन प्रकाशमय-शब्दस्वरूप यानी नूरानी-रूहानी होते हैं।
चूंकि सुरत-शब्द अभ्यासी को कभी-कभी ध्यान , भजन या सवप्न अवस्था में संत सतगुरू व शब्द स्वरूप मालिक के दर्शन अंतर में होने लगते हैं , तो उसकी सच्ची भक्ति उसी वक्त से शुरू होती है और दिन प्रति दिन पेम व लगन बढती जाती है।
त्रिकुटी पद पर पहुंचने पर यह प्रेम व भक्ति निर्मल हो जाती है , इस पद पर कर्मों का मैल धुल जाता है और इस पद से आगे बढने पर सच्ची व निर्मल भक्ति शुरू हो  जाती है और अगम पद पर पहुंचने पर भक्ति पूर्ण हो जाती है। इससे आगे राधास्वामी पद अनामी में सच्चा व पूर्ण ज्ञान प्राप्त  होता है।.

राधास्वामी जी
राधास्वामी हैरिटेज
(संतमत विश्वविधालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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