Saturday, 30 May 2015

अंतर्यात्रा ..... १२ 
भक्ति सच्ची चाहिए, चाहे कच्ची होए. 
संत – साध पूरे के सत्संग से जीव का घाट यानि वर्तमान स्थिति बदल जाती है. सत्संग के प्रभाव से जीव जब उस घाट या स्थिति में पहुँच जाता है, जहाँ से कि संत उपदेश करते है, तब वह प्रेम और आनंद के सागर में सराबोर होता है. इसके लिए ज़रूरी है कि भक्ति सच्ची हो, चाहे कच्ची ही हो. जैसे-जैसे प्रेम बढ़ता जायगा, सतगुरु के स्वरुप और मालिक के चरणों में प्रीत बढ़ती जायगी.
सच्चा अनुराग सुरत में ही पैदा होता है, इस तरह सुरत का प्रभाव भी अनुराग में शामिल होता है और यही अनुराग सच्चा होता है. तो जब सुरत में अनुराग पैदा होता है, तब ही जीव संतमत के उपदेश का अधिकारी बनता है और संतों के उपदेश को अपने हित में जान कर पूरे चित से सुनेगा. सुरत और चेत मिल कर यानि सुरत जब चेत कर संतों के वचन को सुनती है तब मन भी सथ देने लगता है और धीरे-धीरे जगत से फिरने लगता है.
बात तो वाही है जिसे संतो ने आदि से कहा है और सब ने उसी बात को दोहराया है, पर हर काल और परिस्थितियों के अनुसार सब ने अपने-अपने समय की भाषा और शैली में कहा, ताकि जीव के अंतर पर उसका असर हो और गहरा होता जाय. स्कूल में जा कर पढ़ाई करने का मकसद भी यही होता है की टीचर के दिलो-दिमाग में जो है वह विधार्थी के भी दिलो-दिमाग में बस जाय यानि शिष्य की समझ को बढ़ा कर,उस घाट तक पहुंचा दिया जाय जो की गुरु का घाट है. पर जितनी समझ गुरु के पास है, उतना ही असर वह शिष्य पर दल सकता है. इसी तरह संत,साध-महात्मा अपने सत्संग और उपदेश से जीव का घाट बदलवाते है. धीरे-धीरे जीव जब उस घाट पर पहुँच जाता है, जहाँ से सतगुरु पूरे उपदेश फरमाते है तब जो असर पैदा होता है उसकी महिमा को बयां नहीं किया ज सकता, वह तो घाट प्रेम का है.
परमार्थ में कोई दिखावा काम नहीं आता, भक्ति सच्ची ही दरकार है, चाहे कच्ची ही हो, मालिक खुद एक दिन अपनी दया से उसको पक्की कर लेगा.
“कपट भक्ति कुछ काम न आवे.
सच्ची कच्ची कर भक्ति..
कच्ची से पक्की होए एक दिन.
छोर कपट तू कर भक्ति..”
जब तक गुरु की प्रीत से बढ़ कर कोई भी प्रीत है, भक्ति अभी कच्ची ही है. असर तो प्रेम का सतगुरु सब पर डाल देते हैं, जो भी उनके सम्मुख आता है, फिर चाहे जीव विरोध का ही मन ले कर क्यों न उनके सामने जाय. पर फलीभूत वह तब ही होगा, जब की जीव उस घाट पर पहुंचेगा, जहाँ से सतगुरु प्रेम की वर्षा करते हैं. जैसे-जैसे ऊंचे घाट का प्रेम जागता जायगा, सतगुरु और मालिक के प्रति प्रीत बढ़ती जायगी.
राधास्वामी जी
राधास्वामी हेरिटेज 


संतमत विश्वविध्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित.

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