अंतर्यात्रा ..... ८
लूट सके तो लूट
.....
नाम का सिमरन और
कमाई सिर्फ मनुष्य चोले में ही हो सकती है. जीवन का क्या भरोसा ? वह तो थोरा ही
है. इसलिए चाहिए की जीव हर सांस के साथ, दोनों हाथों से नाम की लूट करता रहे, परमार्थ
में लूट का अर्थ यही है की हर वक़्त नाम की याद बनी रहे, वह कभी भी भूलने न पाय.
“ लहना है सतनाम का
, जो चाहे सो ले .”
जो विषयी भोगी जीव
है वे जीवन को कम जान कर, आराम और सुविधा में ही जीवन व्यतीत करना पसंद करते है.
पर संतों को तो नाम की कमाई का उपदेश करना ही फर्ज है.
मनुष्य देह सबसे
उत्तम और अनमोल और दुर्लभ है. सिर्फ इसी चोले में नाम की कमाई हो सकती है. इंसान
और हैवान में यही फर्क है – हैवान नाम से दूर भागता है. विषयों का भोग तो जानवर भी
अपनी स्थिति के अनुसार कर लेते है, पर नाम की कमाई नहीं कर सकते. मात्र मनुष्य
चोले में ही सभी चक्र, कँवल और पदम् , चैतन्य धार के अभ्यास से चैतन्य और जाग्रत
किये जा सकते है. जानवरों का जन्म व म्रत्यु अंतःकरण के घाट से ही होती है, पर
मनुष्य चोले में म्रत्यु छठे चक्र से नीचे नही होती. कितना ही पापी मनुष्य क्यों न
हो, पर छठे चक्र पर ज्योत के समक्ष उपस्थित हुए बिना, म्रत्यु भी वरण नही करती.
छठे चक्र पर ही नाम की गाज सुनी जा सकती है.
नाम का रस बहुत मीठा
है. पर यह तब आता है जब सुरत तन-मन से खिंच कर ऊपर उठ जाती है, यही जीते जी मरना
और मर कर जी उठना है. अंतर में ही मरने के इस रस का पाता चलता है, जब की जीव अंतर
में मर कर जी उठता है. यही वास्तव में मर कर जी उठाना है, जैसा की हज़रात ईसा ने
अपनी शिक्षाओं में स्पष्ट किया है.
इस देह में अमृत और
विष की दोनों धारे सामान रूप से मौजूद हैं. अमृत की धार ऊपर से आ रही है, यही नाम
की धार है, जो जीव इस धार के आसरे ऊपर को चढ़ेगा सो अमरत्व को प्राप्त होगा और जो
निचले घाटों से आने वाली विष की धार के आसरे विषय-भोगों में बढ़ेगा, उसके लिए तो रसातल
का द्वार ही खुलेगा. और विषय-वासनाओं में ही डूब मरेगा .
जीव को उचित है की
जगत के प्रति धीरे-धीरे जगत के प्रति उदासीन होता जाय और अंतर्यात्रा पर नाम की
कमाई करता जाय.
गुरु गोविन्द दोउ
खड़े, काके लागू पायं .
बलिहारी गुरु आपने,
गोविन्द दियो बताय.
राधास्वामी जी
राधास्वामी हेरिटेज
संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित.
0 Comments:
Post a Comment
Subscribe to Post Comments [Atom]
<< Home