Sunday, 24 January 2016

अंतर्यात्रा 53
परमसत्य..........
एक बार आइंस्टाइन् ने ईश्वर के अस्तित्व संबंधी प्रश्नों का उत्तर देते हुए कहा था मेरी दृष्टि में ईश्वर इस संसार में संव्याप्त एक महान नियम है, मेरी मानयता के अनुसार ईश्वरीय सत्य ही अंतिम सत्य है । ईश्वर को स्पष्ट रूप से निर्धारित कर सकना आज की स्थिति में अत्यंत कठिन है, इसकी खोज जारी है ।अंतिम सत्य की खोज ही विज्ञान का परम लक्ष्य है । अपने मार्ग पर चलते हुए विज्ञान ने जो तत्व खोजे और जो सत्य स्वीकार किए हैं उंहें देखते हुए भविष्य में और भी बड़े सत्य का रहस्योघाटन होता रहेगा और ऐसा वैज्ञानिक शोध से ही संभव है। सिद्धांतों, यंत्रों और अविष्कारों में विज्ञान की झलक भर दिखाई पड़ती है ,जिन्हें उसकी उपलब्धियां भर कह सकते हैं। वास्तव में विज्ञान एक जीवनत प्रवर्ती है जो सत्य के शोध को अपना लक्ष्य मानती है। भले ही उसके फलस्वरुप पूर्व मांयताओं पर आंच आती हो अथवा किसी वर्ग विशेष का हित - अनहित होता हो, सत्य को सत्य ही रहना चाहिए। विज्ञान की दृष्टि में ईश्वर सत्य है और उसकी साधना को ही सत्य की खोज कह सकते हैं। इस प्रकार विज्ञान को अपने ढंग का आस्तिक और उसकी शोध साधना को ईश्वर की उपासना कहा जा सकता है। जीवन की हर परिस्थिति में ईश्वर विश्वास में सहायक होता है व असंतुलन को संतुलन में बदल देता है। निराशा के शणों में उसकी यह ज्योति चमकती है जिसे हम दीनदयाल कहते हैं । सफलताओं के साथ-साथ अहंकार भी आता है ,जिनमें स्वेच्छाचार की प्रवर्ती आती है और मर्यादा की नीति नियमो की चिंता ना करते हुए जीव कुछ भी कर गुजरने के लिय तैयार हो जाता है।तो बेहतर है की वह सत्य को पहले जाने क्योंकि सत्य को जाने बिना सत को नहीं जाना जा सकता ।
राधास्वामी सदा सहाय
राधास्वामी जी
राधास्वामी हेरिटेज
( संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए समर्पित)

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