Sunday, 24 January 2016

अंतर्यात्रा 54
नानक दुखिया सब संसार.....
हर व्यक्ति को अपने जीवन में सुख की इच्छा होती है । दुख कोई नहीं चाहता लेकिन मिलता है उसे दुख ।संसार अज्ञान और दुखों से भरा है ,इसे छोड़ना है तो उसे अपने वास्तविक स्वरुप को जानना होगा। श्रुति कहती है कि जब उस ब्रह्म ज्ञान को जान लोगे तो कुछ करने की जरूरत नहीं, भला क्यों ? जीव को जब ईश्वर का ज्ञान हो जाता है तब जीव मुक्त नहीं मोक्ष को प्राप्त कर लेता है ईश्वर जैसा सुख राशि है वैसे मैं भी हूं, इस तरह जीव को जब तक यह ज्ञान नहीं होता तब तक वह सुख ज्ञान से वंचित ही रहता है । सुख शरीर का नहीं पर मन का है जीव को ज्ञान की भूख है वह उसे पाने के लिए बचपन से ही घर से विद्यालय और विद्यालय से विश्वविद्यालय तब ज्ञान की भिक्षा मांगता फिरता है, वह सुख की चाह में हाथ पसारे रहता है, पत्नी पुत्र आदि से सुख मांगता है मगर वह यह बात नहीं जानता कि उन सबको भी वही चाहिए, इससे वे भी वंचित है वे भी सुख के लिए औरों के सामने हाथ पसारे खड़े हैं सभी जीव सुख के लिए औरों के सामने हाथ पसारे हैं और दरिद्र हैं , फिर इस जीव को कौन सुख की भिक्षा देने में समर्थ है ? जिनको उस ईश्वर सुखसागर की प्राप्ति हुई होती है ऐसे भाग्यशाली धनी तो संत ही होते हैं जीव की यह सुख की गरीबी वहीं दूर कर सकने में समर्थ हैं संत के मिलने से जीवन सुख और ज्ञान की भूख शांत हो जाती है संत मिलन से सुख और शांति तो मिलती ही है हमारे संशय भी समाप्त हो जाते हैं और सभी ग्रंथियां टूट जाती हैं।
राधास्वामी सदा सहाय।
राधा स्वामी जी
राधास्वामी हेरिटेज
(संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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