Sunday, 24 January 2016

अंतर्यात्रा 56
भीतर का सच........
भारतीय योगियों द्वारा परकाया प्रवेश के विज्ञान को तर्कवादी अतिरंजित कल्पना कह कर टाल देते हैं। दरअसल मनुष्य के स्थूल शरीर की अपेक्षा उसके सूक्ष्म शरीर की महत्ता अकल्पनीय रूप से कई गुना अधिक होती है। अंतर्यात्रा का मार्ग कहीं बाहर भटकने से नहीं मिलेगा यह यात्रा तो अपने भीतर जाकर ही हो सकती है इसकी शुरुआत तन को साधने से होती है तन को साधने का अर्थ प्राणायाम या कोई आसन आदि नहीं है तन को साधने का अर्थ है -अनावश्यक भौतिक क्रियाकलापों में लिप्त ना हो ना । ताकि देह की ऊर्जा जोकि भीतर जाने के लिए आवश्यक है वह बाहर व्यर्थ ना हो अपने भीतर जाने पर सबसे पहले हमारा सामना हमारे मन से होता है कि यही है हमारे भीतर की दे जिसे सुक्ष्म शरीर कहां गया है इस सूक्ष्म की सामर्थ स्थूल देह की तुलना में अत्यधिक होती है जीवनी और मंकीस समर्थ को एक करके ही अंतर द्वारे को खटखटा सकता है मैं और सतगुरु पूरे की दया मेहर से के अंतर में प्रवेश भी कर सकता है जिसके कारण दे कहा गया है जीवन के सत्य दे और ब्रम्हांड की अंदरुनी संग रचना विज्ञान की विधाएं और क्रिया का ज्ञान जिसे दे और माध्यम से संभव है वह प्राण महसूस में शरीर ही है तो एक अंतर यात्री विद्या अभ्यास इसके लिए उचित है कि वह अपने मन वह उसकी सामत से भली भांति परिचित खोलें प्रशांत महासागर में एक दीप है ,समाय। इसके निकट एक जीव पाया जाता है जिसे "पैलोलो" कहते हैं ।यह पानी में चट्टानों के बीच घर बना कर रहता है। यह साल में सिर्फ अक्टूबर और नवंबर महीनों के उन दिनों में जब चंद्रमा आधा और ज्वार अपनी छोटी अवस्था में होता है यह जीव अंडे देने के लिए पानी की सतह पर आता है और वापस लौट जाता है तो इसमें विशेष क्या है ? विशेष यह है कि, पैलोलो जब अपने घर से चलता है तब अपना आधे से अधिक शरीर घर पर ही छोड़ आता है अंडा देने और तैरने के लिए जितना शरीर आवश्यक होता है इतने से ही यह सत्य पर आने का अपना अभिप्राय पूरा कर लेते है । इस बीच उसका छोड़ा हुआ शेष शरीर निष्प्राण निष्क्रिय पड़ा रहता है । लौट कर पैलोलो फिर से उस छोड़े हुए अंग को स्वयं से जोड़ लेता है और पूरे शरीर में प्राणों का संचार होकर फिर से रक्त प्रवाह व अन्य क्रियाएँ प्रारंभ हो जाती है।
यह एक उदाहरण है जो हमें बताता है कि मनुष्य अपनी आध्यात्मिक उन्नति शरीर के बिना भी सुचारु रख सकता है । भोतिक शरीर से तो हमारा संबंध अधिक-से-अधिक सौ या कुछ वर्षों का ही है, पर सूक्ष्म शरीर हमारे जीवन धारण करने की प्रक्रिया से लेकर मुक्ति के द्वार तक साथ रहता है। एक शिशु जब गर्भावस्था में होता है तब वह सांस नहीं लेता, तब भी उसके शरीर को ऑक्सीजन की पर्याप्त मात्रा पहुंचती और विकास की गति चलती रहती है। उस समय बच्चे की नाभि का संबंध माँ की नाभि से बना रहता है ।नाभी सूर्य का प्रतीक है। प्राणायाम द्वारा तस्तुतः प्रयाणीनि का ही विकास किया जाता है। जिसका चरम विकास ध्यान धारणा और स्मधृष्ट अवस्था में मोक्ष पद की प्राप्ति ही है। प्राणायाम स्वयं में प्राण शक्ति को सूर्य के व्रहद प्राण में घुलाकर स्वयं आधशक्ति मे परिणत हो जाना है । जोकि अंतर्यात्रा का एक पड़ाव मात्र ही है।
स्थूल देह में ना रहकर भी पुराणों में गति बनी रहती है। प्रसिद्ध तिब्बती योगी श्री टी. लाभ सांग रंपा ने अपनी पुस्तक "यू फॉरएवर" में एक घटना का जिक्र किया है कि फ्रांस में क्रांति के दौर में एक देश-द्रोही का सर काट दिया गया। धढ़ से सरके अलग हो जाने पर भी उसके मुंह से स्फुट बुध्बुधहट की प्र
क्रिया होती रही, ऐसा लगा जैसे वह कुछ कहना चाह रहा हो । इस घटना को सरकारी अधिकारियों ने रिकॉर्ड में दर्ज करवाया ,जो कि अभी तक मौजूद है ।
बंदा बहादुर युद्ध के मैदान में शीश कट जाने पर भी धढ़ से युद्ध रत रहे।
अमेरिका के कर्नल टाउन सेंट ने प्राणायाम के अभ्यास से प्राणमय सूक्ष्म शरीर के नियंत्रण में सफलता प्राप्त की और अदभुत प्रयोगों का प्रदर्शन किया। एक बार सैकड़ों वैज्ञानिकों और साहित्यकारों से भरे हॉल में उन्होंने प्रदर्शन किया । वह स्टेज के एक कोने में बैठ गए और ब्लैक बोर्ड पर एक चौक बांध दी गई । इसके बाद उन्होंने अपना प्राणमय सुक्ष्म शरीर अपनी स्थूल काया से बाहर निकालकर , अदृश्य शरीर से ब्लैक बोर्ड पर लोगों द्वारा बोले गए शब्द लिखें वह गणित के कुछ सवाल हल किए ।बीच बीच में वह अपने शरीर मे वापस आकर उपस्थित जन समूह को वस्तुस्थिति समझते जाते थे। इस प्रदर्शन ने लोगो को यह सोचने पर विवश कर दिया की मनुष्य शरीर जीतना दिखाई देता है, यह वहीँ तक सयिमित नहीं है बल्कि वः देह जो अदृश्य है वह इस देह से कही अधिक गुना समर्थ हैं। ऐसे ही प्राण माय ऊर्जा क़े कई प्रयोगों का प्रदर्शन प्रसिद्ध अमेरिकी अणो वैज्ञानिक श्रीमती ज.सी ट्रस्ट ने भी किया है ।
हम सभी जानते है की कबीर साहब की मर्त्य देह गुलाब के ताज़े फूलों मे परिवर्तित हो गयी थी और मीरा की तो देह ही नही मिली। हजरत इसा सूली पर मृत्य घोषित किए जाने के बाद 40 दिन तक अपने शिष्यों के मध्यम सुक्ष्म व् स्थूल देहो में प्रकट होकर अंतरज्यान की शिक्षाओ से परिचित करवाते रहें। फिर सोचो कारण देह की सामर्थ क्या होगी ? इन सभी अनुभवो को एक शब्द अभ्यासी अंतरयात्रा की स्थिति मे सहज ही प्राप्त करता है। जोकि प्राणों की धार पर नहीं पर शब्द की धार के आसरे आगे बढ़ता हुआ परमचेत की धारणा को द्रढ़ करता हुआ हर नाम से आगे बढ़कर अनामी में लीन हो जाता है ।
राधास्वामी जी ।
राधास्वामी सदा सहाय ।
राधास्वामी हेरिटेज ।
( संतमत विश्वविद्यालय की स्थापना के प्रति समर्पित)

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